प्रेम की अंतरंगता से परिचित करवाती सुमिता कुमारी की काव्य रचना
प्रेम//सुमिता
उसे जिंदगी में वापस खींच लाना
सब कुछ देकर ही तो उसने यह जिंदगी चुनी थी
वह हंसता-गाता और रोता भी था
लेकिन खुद को समभाव ही दिखाया सबको
कि उसे सौंप देगा अपने जीवन का बसन्त
और पतझड़ में बिखरते हुए भी
उसने किसी सावन में भीगना नहीं चुना
उसे जिंदगी से मोह बस इतना था
कि जिंदगी किसी की अमानत है
और देह से अपनापन इतना ही
कि देह ने बसा रखी है किसी और की आत्मा
जिसका त्याग उसकी हत्या के बराबर है
उसे देखकर महसूस होता
कि विरक्त-सा यह आदमी
लड़ रहा है युद्ध
स्वयं के विरुद्ध
अपनी काया में जी रहा है अनागत अस्तित्व
जो कभी उसके जीवन का हिस्सा न बन सका
उसकी बातें कितनी मर्मस्पर्शी
जिसमें डूबकर
कोई सारी उम्र पार नहीं उतरना चाहता
भूल जाना चाहता है दुनियां
लेकिन उसे नहीं भूलना चाहता
उसके जाते
दुनियां में प्रेम करने लायक कुछ नहीं रहा
यह किसका भाग्य है किसका दुर्भाग्य
कितना उचित है कितना अनुचित
बहस का मुद्दा हो सकता है
मगर आधुनिकता के दौर में
ऐसी आत्माओं ने ही बचा रखी है
प्रेम की आत्मा...
सुमिता (27-01-23)
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प्रस्तुति:कार्तिका कल्याणी सिंह (हिंदी स्क्रीन डेस्क)