Saturday 30 March 2019

आधी आबादी के दर्द की एक झलक दिखाती रचना

एक पत्नी का रोजनामचा
बेवक़ूफ़ 
वो
रोज़ाना की तरह
आज फिर ईश्वर का नाम लेकर उठी.
किचिन में आई
और चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ाया.
फिर
बच्चों को जगाया
ताकि वो स्कूल के लिए तैयार हो सकें.
फिर
उसने किचिन में
जाकर चाय निकाली
अपने सास ससुर को देकर आयी,
फिर
उसने बच्चों का
नाश्ता तैयार किया
और बीच-बीच में बच्चों को ड्रेस पहनाई,
और
फिर बच्चों को
नाश्ता कराकर उनके
स्कूल का लंच तैयार करने लगी.
इस बीच
बच्चों के स्कूल का
रिक्शा आ गया..
वो
बच्चों को
रिक्शा तक छोड़ कर आई.
वापस आकर
मेज़ से बर्तन इकठ्ठा किये.
इसी बीच
पतिदेव की आवाज़ आई कि मेरे कपङे निकाल दो.

उनको
ऑफिस जाने लिए
कपड़े निकाल कर दिए,
और
वापस आकर
फिर पति के लिए
नाश्ता तैयार करने लगी.
अभी
पति के लिए
उनकी पसन्द का
नाश्ता अण्डा और पराठे तैयार करके टेबिल पर लगाया ही था,
कि
छोटी ननद आई
और ये कहकर कि भाभी मुझे आज कॉलेज जल्दी जाना है,
नाश्ता उठा कर ले गयी.
वो
फिर एक
हल्की सी मुस्कराहट के साथ वापस किचिन में आई.
इतने में
देवर की आवाज़ आई
भाभी नाश्ते तैयार हो गया क्या..?
"जी भाई अभी लायी..!"
ये कहकर
उसने फिर से
अपने पति और देवर के लिए अॉमलेट और पराठे तैयार करने शुरू किये.
"लीजिये नाश्ता तैयार है..!"
पति और देवर ने
नाश्ता किया और अखबार पढ़कर अपने-अपने ऑफिस के लिए निकल चले.
उसने
मेज़ पर से
खाली बर्तन समेटे
और सास-ससुर के लिए
उनका परहेज़ का नाश्ता तैयार करने लगी..
दोनों को
नाश्ता कराने के बाद
फिर बर्तन इकट्ठे किये
और उनको भी किचिन में लाकर धोने लगी..
इसबीच
सफाई वाली भी आ गयी.
उसने
बर्तन का काम
सफाई वाली को सौंप कर खुद बेड की चादरें वगैरह इकट्ठा करने पहुँच गयी.
और फिर
सफाई वाली के साथ
मिलकर सफाई में जुट गयी.
अब तक 11 बज चुके थे.
अभी
वो पूरी तरह
काम समेट भी ना पायी थी कि कॉलबेल बजी.

दरवाज़ा खोला
तो सामने बड़ी ननद
और उसके पति व बच्चे सामने खड़े थे.
उसने
ख़ुशी-ख़ुशी
सभी को आदर के साथ घर में बुलाया,
और
उनसे बातों में
उनके आने की ख़ुशी का इज़हार करती रही.
ननद की
फ़रमाइश के मुताबिक़
नाश्ता तैयार करने के बाद
अभी वो ननद के पास बैठी ही थी...
कि
सास की आवाज़ आई
"बहू खाने का क्या प्रोग्राम है..?"
उसने घडी पर
नज़र डाली तो 12 बज रहे थे.

उसकी
फ़िक्र बढ़ गयी
वो जल्दी से फ्रिज़ की तरफ लपकी
और
सब्ज़ी निकाली 
फिर से दोपहर के
खाने की तैयारी में जुट गयी.
खाना
बनाते-बनाते
अब दोपहर का एक बज चुका था.
बच्चे
स्कूल से आने वाले थे.
लो बच्चे आ गये...
उसने
जल्दी-जल्दी
बच्चों की ड्रेस उतारी
और उनका मुँह-हाथ धुलवाकर उनको खाना खिलाया.
इसी बीच
छोटी ननद भी
कॉलेज से आ गयी
और देवर भी आ चुके थे.
उसने
सभी के लिए
मेज़ पर खाना लगाया
और खुद रोटी बनाने में लग गयी.
खाना खाकर
सब लोग फ्री हुए
तो उसने मेज़ से फिर
बर्तन जमा करने शुरू कर दिये.
इस वक़्त तीन बज रहे थे.
अब
उसको
खुद को भी
भूख का एहसास होने लगा था.
उसने
हॉट-पॉट देखा
तो उसमे कोई रोटी नहीं बची थी.
उसने
फिर से
किचिन की ओर रुख किया .
तभी
पतिदेव घर में
दाखिल होते हुये बोले कि
आज
देर हो गयी
भूख बहुत लगी है
जल्दी से खाना लगा दो.
उसने
जल्दी-जल्दी
पति के लिए खाना बनाया
और
मेज़ पर
खाना लगा कर
पति को किचिन से गर्मागर्म रोटियाँ बनाकर
ला-ला कर देने लगी.
अब तक चार बज चुके थे..
अभी वो
खाना खिला ही रही थी
कि पतिदेव ने कहा कि आ जाओ तुम भी खालो.
उसने
हैरत से
पति की तरफ देखा
तो उसे ख्याल आया कि
आज मैंने सुबह से कुछ खाया ही नहीं.
इस ख्याल के
आते ही वो पति के
साथ खाना खाने बैठ गयी.
अभी
पहला निवाला
उसने मुँह में डाला ही था की आँख से आँसू निकल आये.
पतिदेव ने
उसके आँसू देखे
तो फ़ौरन पूछा कि
तुम क्यों रो रही हो...?
वो खामोश रही
और सोचने लगी कि
इन्हें
कैसे बताऊँ कि
ससुराल में कितनी मेहनत के बाद ये रोटी का निवाला नसीब होता है
आकांक्षा यादव के ब्लॉग से साभार 
और लोग
इसे मुफ़्त की रोटी कहते हैं.
पति के
बार बार पूछने पर
उसने सिर्फ इतना कहा
कि
कुछ नहीं
बस ऐसे ही आँसू आ गये.
पति
मुस्कुराये और बोले
तुम
औरतें भी
बड़ी "बेवक़ूफ़" होती हो.
बिना वजह
रोना शुरू करदेती हो.
........... 
क्या वो 
वाकई बेवक़ूफ़ होती हैं..?

ज़रा सोचिये..
उन्हें 
ज्यादा कुछ नहीं
सहानुभूति और स्नेह 
के बस दो मीठे बोल चाहिये.

अपनी पत्नी को सम्मान दीजिए.... 

(यह सन्देश रूपी रचना वाट्सएप पर मिली।  किसने लिखा, इसका जिक्र नहीं ... पर जिसने भी लिखा दिल्लगी से लिखा.....साधुवाद ।  अच्छा लगा, अत: आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ)

साभार -आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ http://shabdshikhar.blogspot.in/

Thursday 21 February 2019

जंग के माहौल में कविता कुम्भ-4 रविवार 24 को//एकता पूजा शर्मा

कविता कुम्भ के इतिहास पर एक संक्षिप्त सी नज़र 
लुधियाना: 21 फरवरी 2019: (एकता पूजा शर्मा//साहित्य स्क्रीन टीम):: 
यही लुधियाना था--यही दुनिया थी--इसी तरह का माहौल था जब जंग की बात करते हुए जनाब साहिर लुधियानवी साहिब ने लिखा था:
खामोश ज़मीं के सीने में, खैमों की तनाबें गड़ने लगीं
मक्खन-सी मुलायम राहों पर बूटों की खराशें पड़ने लगीं
                       फौजों के भयानक बैंड तले चर्खों की सदायें डूब गईं
                       जीपों की सुलगती धूल तले फूलों की क़बायें डूब गईं
इनसान की कीमत गिरने लगी, अजनास के भाओ चढ़ने लगे
चौपाल की रौनक घटने लगी, भरती के दफ़ातर बढ़ने लगे
                       बस्ती के सजीले शोख जवाँ, बन-बन के सिपाही जाने लगे
                       जिस राह से कम ही लौट सके उस राह पे राही जाने लगे
इन जाने वाले दस्तों में ग़ैरत भी गई, बरनाई भी
माओं के जवां बेटे भी गये बहनों के चहेते भाई भी
                   बस्ती पे उदासी छाने लगी, मेलों की बहारें ख़त्म हुई
                   आमों की लचकती शाखों से झूलों की कतारें ख़त्म हुई
धूल उड़ने लगी बाज़ारों में, भूख उगने लगी खलियानों में
हर चीज़ दुकानों से उठकर, रूपोश हुई तहखानों में
आज फिर जंग का माहौल बनाया जा रहा है। बदले के नारे लग रहे हैं। नफरत की आग बरस रही है। गोलियों और बम धमाकों में एक बार फिर चरखे की सदायें दम तोड़ रही हैं। उस संवेदनशील समय में भी कविता कुम्भ-4  का आयोजन अपने पूर्वघोषित कार्यकम के अनुसार हो रहा है। एक उम्मीद के साथ कि शायद हम इंसान कहलाने वालों में इंसानियत जाग उठे।
इस वर्ष का कविता कुम्भ-4  रविवार 24 फरवरी को करवाया जा रहा है। 
दिनांक 24 फरवरी 2019 को अदारा शब्द जोत की तरफ से करवाया जा रहा है।
जिसमें नए उभरते कवि हिस्सा लेंगे।
जिसका आग़ाज़ आज से 4 वर्ष पूर्व 2016 में जनमेजा सिंह जौहल जी, रविंदर रवि जी और प्रभजोत सोही जी ने कविता को पहचान देने के उद्देश्य से किया था जिसमें अब मीत अनमोल जी का नाम भी शामिल हो चुका है। इसमें शुरू से ही कवियों की गिनती 52 रखी जाती है और पंजाब भर से चुनिंदा कवियों को आमंत्रित किया जाता है।इसका मुख्य उद्देश्य केवल और केवल कविता ही है। यही एक ऐसा मंच है जहां कोई भी प्रधानगी मण्डल मंच पर नहीं बिठाया जाता। यहाँ केवल कवि ही मंच पर अपनी कविताएँ पेश करते हैं और बाक़ी सभी लोग उसका आनन्द उठाते हैं। इसका उद्देश्य लोगों को कविता से जोड़ना है और केवल यही एक ऐसा मंच है जो केवल कविता को समर्पित है। कविता चाहे किसी भी भाषा में हो अपना जादू बिखेरती है। इस बार 2019 का यह कुम्भ त्रिभाषीय होगा। जहाँ पंजाबी के साथ साथ हिन्दी और उर्दू के कवि भी अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा कर इसमें चार चाँद लगाएंगे। इस साल तो शब्द जोत वालों ने एक और नया कदम उठाया है कि जो भी कविताएँ कविता कुम्भ में पेश की जाएंगी वो सभी कवियों के नाम के साथ कविता कुम्भ की किताब में प्रकाशित होंगी। जो कि कवियों के लिए एक नया तोहफ़ा है।
2017 में इसकी समीक्षक थीं नीतू अरोड़ा जी
2018 में समीक्षक के रूप में स्वर्णजीत सवी जी आमंत्रित थे
2019 में समीक्षक डॉ. सरबजीत सिंह जी हैं।
तो इस वर्ष के कविता कुम्भ का आनन्द उठाने के लिए अदारा शब्द जोत आपका हार्दिक अभिनन्दन करता है। उम्मीद है कि इस वर्ष भी कविता और कवियों को लुधियाना पहले से भी ज़्यादा प्यार और सम्मान देगा।
आखिर  फिर साहिर साहिब की लम्बी नज़्म परछाईयां की कुछ पंक्तियाँ:
यह सर ज़मीन है गौतम की और नानक की,
इस अर्ज़े-पाक पे वहशी न चल सकेंगे कभी।
                 हमारा खून अमानत है नस्ले-नौ के लिए,
                 हमारे खून पे लश्कर न पल सकेंगे कभी॥
कहो कि आज भी हम सब अगर खामोश रहे,
तो इस दमकते हुए खाकदाँ की खैर नहीं।
                जुनूँ की ढाली हुई ऐटमी बलाओं से,
                ज़मीं की खैर नहीं आसमाँ की खैर नहीं॥
गुज़श्ता जंग में घर ही जले मगर इस बार,
अजब नहीं कि ये तनहाइयाँ भी जल जायें।
            गुज़श्ता जंग में पैकर जले मगर इस बार,
            अजब नहीं कि ये परछाइयाँ भी जल जायें॥