Thursday 8 February 2024

आखिरी सांस तक साहित्य साधना से जुड़े रहे जनाब कृष्ण बिहारी नूर

Tuesday 27th May 2023 at 5:45 PM

उनकी शायरी ज़िंदगी की कठिनइयों से हमेशां रूबरू रही 


साहित्य की दुनिया से
: 30 मई 2023: (मीडिया लिंक डेस्क//साहित्य स्क्रीन)::

जब आखिरी वक्त की घडियां नज़दीक आने को हुईं तो वह उस समय भी शायरी के इश्क में थे। मई, 2003 में नूर साहब एक मुशायरे में शामिल होने के लिए लखनऊ से गाजियाबाद जा रहे थे। जोश और उत्साह हमेशां उनके जीवन में बहुत गहरे मित्र की तरह साथ रहा। उस दिन भी उनके तन मन का माहौल भी कुछ ऐसा ही था। गंभीरता और जोश बहुत खूबसूरत स्वभाव था। 

सफ़र के लिए उन्हें उस दिन भी ऊपर वाली सीट ही मिली थी। ऊपर की सीट का एक फायदा रहता है कि नीचे वाला कोलाहल दिमाग और शायरी के लिए आवश्यक एकाग्नरता को कभी भंग नहीं करता। हालांकि उतरने और चढने में होने वाले कष्ट के कारण ज़्यादातर लोग ऊपर की सीट को पसंद भी नहीं करते। वृद्ध उम्र में तो और भी ध्यान रखना पड़ता है। लेकिन नूर साहिब को एकाग्रता के कारण ऊपर वाली सीट पसंद भी थी। हमेशा इसे प्राथमिकता दिया करते। उस दिन तो यह सब बहाना ही बन गया। 

आखिरी सफ़र बनने वाली उस ट्रेन में ऊपर की सीट से नीचे उतरते समय गिर जाने से उनके पेट में चोट आ गई। लेकिन उन्होंने चोट की परवाह न करते हुए अगले दिन मुशायरे में भी शिरकत की। पहले की तरह बातें भी की। किसी को भी अनहोनी का अंदेशा तक नहीं था। 

उन्हें रूटीन में देख कर उस दिन तो बात आई गई हो गई लेकिन मुशायरे के अगले दिन 30 मई को नूर साहब सभी को छोड़कर अनंत यात्रा पर चले गए। उनका अंतिम संस्कार भी गाजियाबाद में ही किया गया। उनका जाना देह का नत तो था लेकिन उनकी शायरी ने एक नया सफ़र शुरू किया। यह शायरी तेज़ी से लोगों के दिलों तक पहुंचने लगी। ज़िंदगी की मुश्किलों का बेबाकी से बखान करती शायरी आज भी लोगों की जुबां पर है। यह सब उनकी साहित्य साधना का ही परिणाम है। इसी साधना में छिपे हैं उनके ख़ास गुण भी।  

उल्लेखनीय है कि ज़मीन से जुड़े हुए जानेमाने शायर जनाब कृष्णबिहारी नूर की साहित्य साधना भी कमाल की रही। बिना किसी का अहसान लिए, बिना किसे से गुजारिशें किए, बिना किसी के आगे सिर झुकाए इन्दगी के रंगों को देखते रहे जनाब  नूर साहिब। सिर्फ देखते  उन अनुभूतियों की दिल और दिमाग में सहेजते रहे। योग साधना और तंत्र साधना में साधक बहुत  क्रियाओं और बेहद कठिन आसनों के अभ्यास से सहजता की स्थिति को उपलब्ध होते हैं। इस  सहज अवस्था में पहुँचने के बाद वे अपनी अनुभूति की अभिव्यक्ति भी देते हैं। यह अनुभूतियाँ शरीर और दुनिया में रहते हुए भी इनसे अलग होने का अहसास भी करवाती हैं। 

जब वह कहते हैं: 

ज़िंदगी अब बता किधर जाएं? ज़हर बाजार में मिला नहीं!

हो सकता है ज़िंदगी के आनंद, सुख सुवधा, अमीरी और विकास के दावे करने वाले अपनी जगह सही हों शायद लेकिन नूर साहिब तो ुकि बात करते हैं जो बहु संख्या में हैं और ज़िंदगी में दुःख, सर्द और गम का विष पी रहे हैं। नूर साहिब उस ज़िंदगी बात करते हुए कहते हैं:

ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं! और क्या जुर्म है, पता ही 

तो आजकल के दौर की ज़िंदगी की सभी मुश्किलों की  तरफ बहुत ही सलीके से इशारा कर जाते हैं। जीना भी कठिन है और मरना भी  गया--कितनी गहन मजबूरी है! उनकी शायरी पढ़ते जा सुनते हुए इस बात का अहसास बहुत बार होता है। 

उनका इस दुनिया में जन्म 29 अगस्त 1954 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की बांसगाँव तहसील (अब खजनी) अन्तर्गत ग्राम कुण्डाभरथ में  हुआ। लगता है इस जन्म से पहले वह निश्चित ही किसी और दुनिया में भी रहे होंगे। उनकी शैरी पढ़ते हुए अहसास होता है कि उनकी शिक्षा की औपचारिकता भी पूरी शिद्दत से। कानपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम. ए. किया। सन 1968-69 से लेखन की शुरुआत हुई। पहली कहानी सन 1071में प्रकाशित हुई और उनका नाम कहानीकारों में भी उभर कर सामने आया। तबसे सैकड़ों रचनाएँ हिन्दुस्तान के प्रमुख समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशितहोती रहीं। यूट्यूब पर उनके मुशायरे भी मिल जाएंगे। अनेक प्रकार की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थाओं के सदस्य और इमारात में हिन्दी के विकास में संलग्न रहे। संप्रति संयुक्त अरब इमारात के अबूधाबी नगर में अध्यापन के व्यवसाय में हैं। उनकी रचनाएं आज भी बहुत से लोगों के दिलों में हैं। उनकी शायरी सीधा दिल में उतरती है। इसके साथ ही ज़िंदगी के रूबरू भी करवाती है। 

उनकी प्रकशित कृतियों में कुछ नाम आज भी विशेष हैं:

कहानी संग्रहों में हैं : दो औरतें, पूरी हक़ीकत पूरा फ़साना, नातूर।

एकांकी नाटक में हैं: यह बहस जारी रहेगी, एक दिन ऐसा होगा, गांधी के देश में

नाटक की दुनिया में है: संगठन के टुकड़े

कविता संग्रह में: मेरे मुक्तक : मेरे गीत, मेरे गीत तुम्हारे हैं, मेरी लम्बी कविताएँ,

उपन्यास: रेखा उर्फ नौलखिया, पथराई आँखों वाला यात्री, पारदर्शियाँ।

यात्रा वृतांत: सागर के इस पार से उस पार से।

गौरतलब है कि "दो औरतें" कहानी का नेशनल स्कूल ऑफ ड्रॉमा दिल्ली द्वारा श्री देवेंन्द्र राज अंकुर के निर्देशन में सन 1996 में जो मंचन हुआ वह बेहद लोकप्रिय हुआ। अखबार और रेडियो की दुनिया से संबद्ध रहने के बाद सत्रह वर्षों से भी अधिक समय तक अध्यापन से भी जुड़े रहे। इसे इस रूप में भी बेहद पसंद किया गया। 

कृष्ण बिहारी नूर साहिब के बहुत सी शायरी विभिन्न वेबसाईट पर भी देखि जा सकती है। उनके लिए अलग से भी एक समर्पित वेवसाईट बनाने के प्रयास चले थे लेकिन इनके बारे में ज़्यादा पता नहीं चल सका। आखिर में एक बात और कि वह आखिरी सांस तक शायरी और मुशायरे के लिए समर्पित रहे। ऐसे ही हुआ करते हैं कलम के सिपाही। 

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Thursday 8 June 2023

प्रेम पर सुमिता कुमारी की एक गहरी रचना //प्रेम//सुमिता

प्रेम की अंतरंगता से परिचित करवाती सुमिता कुमारी की काव्य रचना 


मोहाली: 7 जून 2023: (कार्तिका सिंह//साहित्य स्क्रीन डेस्क)::

आज के युग में प्रेम के नाम पर जो जो कुछ हो रहा है उसे देखते हुए लज्जा सी महसूस होने  लगती है। ऐसे माहौल में ऐसे सात्विक प्रेम की बात करना जिसमें देह और अंतरात्मा के रिश्तों का भान होने लगे तो एक चमत्कार सा लगता है लेकिन सुमिता जी की कविता "प्रेम" में आपको यह सब महसूस होगा। <यह कविता आपको उस लोक में ले जाएगी जिसे सच्चे प्रेम का लोक कहा जा सकेगा। इस तरह के चमत्कार ही शायद इस समाज और दुनिया को बचा सकें। भगवन तक पहुँचाने की क्षमता रखने वाला प्रेम आजकल कितना बौना हो कर रह गया है! कयूं अलौकिक से हो गए हैं सच्चे प्रेम के किस्से? मैडम सुमिता जी पर एक पोस्ट आप हिंदी स्क्रीन में भी यहां क्लिक कर के पढ़ सकते हैं। 

 प्रेम//सुमिता


आसान नहीं था  

उसे जिंदगी में वापस खींच लाना

सब कुछ देकर ही तो उसने यह जिंदगी चुनी थी

वह हंसता-गाता और रोता भी था

लेकिन खुद को समभाव ही दिखाया सबको

मानवीय भावनाएं उसे साबित कर सकती थी सांसारिक

उसने कभी वादा किया था 

कि उसे सौंप देगा अपने जीवन का बसन्त

और पतझड़ में बिखरते हुए भी

उसने किसी सावन में भीगना नहीं चुना

उसे जिंदगी से मोह बस इतना था 

कि जिंदगी किसी की अमानत है

और देह से अपनापन इतना ही 

कि देह ने बसा रखी है किसी और की आत्मा

जिसका त्याग उसकी हत्या के बराबर है

उसे देखकर महसूस होता 

कि विरक्त-सा यह आदमी

लड़ रहा है युद्ध 

स्वयं के विरुद्ध

अपनी काया में जी रहा है अनागत अस्तित्व

जो कभी उसके जीवन का हिस्सा न बन सका


वह आंखें कितनी अनमोल होंगी 

उसकी बातें कितनी मर्मस्पर्शी

जिसमें डूबकर 

कोई सारी उम्र पार नहीं उतरना चाहता

भूल जाना चाहता है दुनियां

लेकिन उसे नहीं भूलना चाहता

उसके जाते

दुनियां में प्रेम करने लायक कुछ नहीं रहा


यह किसका भाग्य है किसका दुर्भाग्य

कितना उचित है कितना अनुचित

बहस का मुद्दा हो सकता है

मगर आधुनिकता के दौर में 

ऐसी आत्माओं ने ही बचा रखी है

प्रेम की आत्मा...

सुमिता (27-01-23)

आपको यह पोस्ट कैसी लगी अवश्य बताएं। आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी। 

                                                                                 प्रस्तुति:कार्तिका कल्याणी सिंह (हिंदी स्क्रीन डेस्क)

Friday 12 August 2022

राहत इंदौरी साहिब की याद में खास प्रोग्राम 13 अगस्त को

इंदौर में होना है जश्न ए दास्तान नाम का यादगारी मुशायरा 


इंदौर
: 12 अगस्त 2022: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो)::

राहत इन्दौरी साहिब एक युग कवि थे। आम जनता के दिलों की बात बेहद सादगी से करने वाले महान शायर थे। शायरी के शब्द तो बहुत ख़ास होते ही थे लेकिन शायरी कहने का उनका अंदाज़ भी बेहद ख़ास था। एक एक शेयर को वह बहुत ही सलीके से कहते। एक नहीं कई कई अंदाज़ में कहते। इतने ज्यादाबहुत से अलग अलग अंदाज़ कि जिसे शायरी की पूरी समझ न भी आती हो उसे भी उनके अंदाज़ से उनका शेयर समझ आता।  न सिर्फ समझ आता बल्कि गहराई से दिल और दिमाग में उत्तर जाता। ऐसे थे हमारे राहत इंदौरी साहिब।  उनकी समृति में एक विशेष आयोजन हो रहा है। 

राहत साहिब के बेटे जनाब फैसल राहत साहिब ने कहा है इसे मेरा परसनल मैसेज समझें। 

इस मैसेज को मेरा पर्सनल इनविटेशन समझें, वक़्त की कमी के चलते अलग से फ़ोन नहीं कर पा रहा हूँ......

जश्न ए दास्तान 

*राहत साहब की याद में*

एक अनोखा मुशायरा आपका इंतज़ार कर रहा है, ज़रूर तशरीफ़ लाएं.....

13 अगस्त 2022, शाम 05:30 बजे से 

लाभ मंडपम ऑडिटोरियम, अभय प्रशाल के पास, इंदौर

शुक्रिया -

फैसल राहत 

■ Faisal Rahat s/o Dr. Rahat Indori

अब चलते चलते राहत साहिब के अंदाज़ का एक शेयर भी--

हम अपनी जान की दुश्मन को अपनी जान कहते हैं 

मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिन्दुस्तान कहते हैं

जो दुनिया में सुनाई दे उसे कहते हैं ख़ामोशी

जो आँखों में दिखाई दे उसे तूफान कहते हैं

                                           – राहत इंदौरी

Wednesday 22 June 2022

लिख न सके यदि अपने युग को, समझो तुम फ़र्ज़ी लिखते हो।

 किसकी जय गाथा लिखनी थी, सोचो, तुम किसकी लिखते हो! 

रायबरेली के रहने वाले जनाब जय चक्रवर्ती ने बहुत कुछ लिखा है। बहुत ही लोकप्रिय शायर हैं। दोहे भी कमाल के हैं और ग़ज़लें भी। हर रचना एक संदेश देती है। हर रचना जगाती है। आंदोलित भी करती है। खरड़ मोहाली में रहनेवाले शायरों ने व्टसप पर एक ग्रुप बना रखा है वेद दीवाना फैन क्लब। इस ग्रुप में तकरीबन हर पोस्ट में खूब सूरत शायरी होती है। वक्त की बात करती हुई। जनता की बात करती हुई। सत्ता की चालों को बेनकाब करती हुई। इस बार इसी ग्रुप में सामने आई जय चक्रवर्ती साहिब की एक ख़ास ग़ज़ल जिसमें सवाल किए गए हैं है कलमकारों।  इसे पोस्ट किया इस ग्रुप में जनाब शिव शरण बंधु साहिब ने 21 जून 2022 की रात्रि को 07:51 पर। शिव साहिब से सम्पर्क किया जा सकता है उनके मोबाईल नंबर पर +91 94151 66683

जय चक्रवर्ती साहिब की ग़ज़ल 

लिखने भर को ही लिखते हो,

या फिर कुछ सच भी लिखते हो?


'ना' को 'ना' लिखना आता है,

अथवा केवल 'जी' लिखते हो?


लिख न सके यदि अपने युग को,

समझो तुम फ़र्ज़ी लिखते हो। 


क्यों लिखते हो, पहले सोचो,

फिर लिक्खो जो भी लिखते हो। 


लिक्खो औरों की भी पीड़ा,

क्यों केवल अपनी लिखते हो?


जैसा लिखते, दिखते हो क्या,

या यूँ ही खाली लिखते हो?


किसकी जय गाथा लिखनी थी,

सोचो, तुम किसकी लिखते हो!

@जय चक्रवर्ती  

वेद दीवाना फैन क्लब से साभार

Saturday 4 September 2021

मुनादी//धर्मवीर भारती की यादगारी ऐतिहासिक रचना

 इस कविता ने उस वक्त का सच सामने रखा था 


खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का

हुकुम शहर कोतवाल का

हर खासो-आम को आगह किया जाता है

कि खबरदार रहें

और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से

कुंडी चढा़कर बन्द कर लें

गिरा लें खिड़कियों के परदे

और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें

क्योंकि

एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज में

सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है


शहर का हर बशर वाकिफ है

कि पच्चीस साल से मुजिर है यह

कि हालात को हालात की तरह बयान किया जाए

कि चोर को चोर और हत्यारे को हत्यारा कहा जाए

कि मार खाते भले आदमी को

और असमत लुटती औरत को

और भूख से पेट दबाये ढाँचे को

और जीप के नीचे कुचलते बच्चे को

बचाने की बेअदबी की जाये


जीप अगर बाश्शा की है तो

उसे बच्चे के पेट पर से गुजरने का हक क्यों नहीं ?

आखिर सड़क भी तो बाश्शा ने बनवायी है !

बुड्ढे के पीछे दौड़ पड़ने वाले

अहसान फरामोशों ! क्या तुम भूल गये कि बाश्शा ने

एक खूबसूरत माहौल दिया है जहाँ

भूख से ही सही, दिन में तुम्हें तारे नजर आते हैं

और फुटपाथों पर फरिश्तों के पंख रात भर

तुम पर छाँह किये रहते हैं

और हूरें हर लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी

मोटर वालों की ओर लपकती हैं

कि जन्नत तारी हो गयी है जमीं पर;

तुम्हें इस बुड्ढे के पीछे दौड़कर

भला और क्या हासिल होने वाला है ?


आखिर क्या दुश्मनी है तुम्हारी उन लोगों से

जो भलेमानुसों की तरह अपनी कुरसी पर चुपचाप

बैठे-बैठे मुल्क की भलाई के लिए

रात-रात जागते हैं;

और गाँव की नाली की मरम्मत के लिए

मास्को, न्यूयार्क, टोकियो, लन्दन की खाक

छानते फकीरों की तरह भटकते रहते हैं…

तोड़ दिये जाएँगे पैर

और फोड़ दी जाएँगी आँखें

अगर तुमने अपने पाँव चल कर

महल-सरा की चहारदीवारी फलाँग कर

अन्दर झाँकने की कोशिश की


क्या तुमने नहीं देखी वह लाठी

जिससे हमारे एक कद्दावर जवान ने इस निहत्थे

काँपते बुड्ढे को ढेर कर दिया ?

वह लाठी हमने समय मंजूषा के साथ

गहराइयों में गाड़ दी है

कि आने वाली नस्लें उसे देखें और

हमारी जवाँमर्दी की दाद दें


अब पूछो कहाँ है वह सच जो

इस बुड्ढे ने सड़कों पर बकना शुरू किया था ?

हमने अपने रेडियो के स्वर ऊँचे करा दिये हैं

और कहा है कि जोर-जोर से फिल्मी गीत बजायें

ताकि थिरकती धुनों की दिलकश बलन्दी में

इस बुड्ढे की बकवास दब जाए


नासमझ बच्चों ने पटक दिये पोथियाँ और बस्ते

फेंक दी है खड़िया और स्लेट

इस नामाकूल जादूगर के पीछे चूहों की तरह

फदर-फदर भागते चले आ रहे हैं

और जिसका बच्चा परसों मारा गया

वह औरत आँचल परचम की तरह लहराती हुई

सड़क पर निकल आयी है।


ख़बरदार यह सारा मुल्क तुम्हारा है

पर जहाँ हो वहीं रहो

यह बगावत नहीं बर्दाश्त की जाएगी कि

तुम फासले तय करो और

मंजिल तक पहुँचो


इस बार रेलों के चक्के हम खुद जाम कर देंगे

नावें मँझधार में रोक दी जाएँगी

बैलगाड़ियाँ सड़क-किनारे नीमतले खड़ी कर दी जाएँगी

ट्रकों को नुक्कड़ से लौटा दिया जाएगा

सब अपनी-अपनी जगह ठप

क्योंकि याद रखो कि मुल्क को आगे बढ़ना है

और उसके लिए जरूरी है कि जो जहाँ है

वहीं ठप कर दिया जाए


बेताब मत हो

तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गूल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है

बाश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से

तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए

बाश्शा के खास हुक्म से

उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा

दर्शन करो !

वही रेलगाड़ियाँ तुम्हें मुफ्त लाद कर लाएँगी

बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी

ट्रकों को झण्डियों से सजाया जाएगा

नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा

और जो पानी माँगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा

लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में

और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो

ताकि वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से

बहा, वह पुँछ जाए

बाश्शा सलामत को खूनखराबा पसन्द नहीं

                              --धर्मवीर भारती  

देश में लोकनायक जयप्रकाश नारायण जनता के परिनिधि बन कर ु भरे थे सत्ता के खिलाफ। उस दौर की याद दिलाती यह कविता "मुनादी" आज भी बहुत कुछ कह रही है। हालात और भी नाज़ुक होते जा रहे हैं। ऐसे में यह रचना कालजयी साबित हो रही है। देश भर में एक हवा पैदा हो गई थी लोकनायक जे पी के पीछे पूरी जनता चल पड़ी थी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण जब घर से निकले तो फिर एक बविषाल काफिला बन गया। वह लुधियाना भी आए थे। उनकी रैलियों की कवरेज अंग्रेजी मीडिया ने बहुत नदे पैमाने पर की थी।  उनके खिलाफ सत्ता के रुख को डा. धर्मवीर भारती की यह प्रसिद्ध काव्य रचना किसी दस्तावेज़ी की तरह संभालती हुई लगातार आगे लेजा रही है। मुनादी कहते ही डी.धर्मवीर भर्ती यद् आते हैं पर साथ ही याद आते हैं जयप्रकाश नारायण और उनका आंदोलन। जे पी साहिब के उस नाज़ुक दौर से चलती हुई यह बात बहुत कुछ याद दिलाती है और किसान आंदोलन तक इस काव्य रचना को एक बार फिर प्रासंगिक क्र देती है। इस पर विस्तृत चर्चा जल्द ही की जाएगी किसी अलग पोस्ट में फ़िलहाल इतना ही कि भारती जी की यह रचना आज भी अमर है। आज भी प्रासंगिक है। यह आज भी बहुत कुछ कह रही है। -सम्पादक:साहित्य स्क्रीन 

Tuesday 17 August 2021

दूरदर्शन ने "रग रग में गंगा" की दूसरी श्रृंखला का शुभारंभ किया

प्रविष्टि तिथि: 16 AUG 2021 6:32PM by PIB Delhi                       

‘रग रग में गंगा’की पहली श्रृंखला को 1.75 करोड़ लोगों ने देखा था

दूरदर्शन ने यात्रा-वृत्तांत कार्यक्रम "रग रग में गंगा" की दूसरी श्रृंखला का शुभारंभ किया

दूरदर्शन चार साल में सबसे अधिक देखा जाने वाला चैनल बन जाएगा- श्री अनुराग ठाकुर

अपनी तरह की लम्बी नदियों में, गंगा दुनिया की शीर्ष 10 सबसे स्वच्छ नदियों में एक है-

  

 
श्री गजेंद्र सिंह शेखावत का विशेष समाचार लेख 

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री अनुराग ठाकुर ने आज केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत और केंद्रीय जल शक्ति एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल के साथ सफल यात्रा-वृत्तांत कार्यक्रम, ‘रग रग में गंगा’की दूसरी श्रृंखला का अनावरण किया।

इस अवसर पर मंत्री ने कहा कि दूसरी श्रृंखला का शुभारंभ ही अपने आप में पहली श्रृंखला की सफलता का पैमाना है, जिसे लगभग 1.75 करोड़ दर्शकों ने देखा था। मंत्री ने कार्यक्रम की टीम को बधाई दी और कहा कि दूसरी श्रृंखला से उम्मीदें अधिक हैं; यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि जनभागीदारी से जन आंदोलन तक का एक प्रयास है।

गंगा के कायाकल्प में योगदान देने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हुए मंत्री ने कहा कि गंगा का सभी भारतीयों के साथ भावनात्मक जुड़ाव है। भारतीयों के साथ गंगा का आध्यात्मिक संबंध होने के साथ-साथ इसका बहुत बड़ा आर्थिक महत्व भी है। मंत्री ने ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि आज की जलवायु चुनौतियों से निपटने के प्रयासों में बच्चों को भागीदार बनाया जाना चाहिए।         

मंत्री महोदय ने कहा कि अगले तीन-चार साल में दूरदर्शन सबसे अधिक देखा जाने वाला चैनल बन जाएगा। उन्होंने कहा कि चैनल दूरदर्शन के दर्शकों की संख्या को बढ़ाने के लिए उचित सामग्री का निर्माण करेगा।

श्री ठाकुर ने आज़ादी के अमृत महोत्सव से शताब्दी समारोह तक के लिए विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के तहत किए जा रहे प्रयासों में भाग लेने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हुए, सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान को दोहराया।

रग रग में गंगा यात्रा-वृत्तांत की दूसरी श्रृंखला में इस महान नदी के सांस्कृतिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक विवरणों को शामिल किया जाएगा तथा यह निर्मलता व अविरलता के विषय पर केंद्रित होगा। यात्रा वृत्तांत एनएमसीजी द्वारा गंगा को बचाने के लिए किए जा रहे कार्यों को भी स्थापित करेगा और एनएमसीजी के सहयोग से इसे दूरदर्शन पर एक यात्रा वृत्तांत श्रृंखला 'रग रग में गंगा' के दूसरे सीजन को फिर से लेकर आएगा। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गंगा नदी की भव्यता और इसके संरक्षण की आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करना है। काव्यात्मक रूप से फिल्माई गई श्रृंखला नदी की भव्यता और उसके परिदृश्य को गंगा नदी की आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक विरासत और इसकी वर्तमान इकोलोजिकल स्थिति का लेखा-जोखा प्रस्तुत करेगी। यात्रा वृत्तांत, जिसमें 26 एपिसोड शामिल हैं, इस कार्यक्रम के एंकर जाने-माने अभिनेता राजीव खंडेलवाल है और 21 अगस्त 2021 से प्रत्येक शनिवार और रविवार को रात 8:30 बजे दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर प्रसारित किया जाएगा।

श्रोताओं को संबोधित करते हुए केन्द्रीय मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि सरकार तीन साल की छोटी सी अवधि में इतनी लंबी गंगा नदी को दस सबसे अधिक स्वच्छ नदियों में स्थान दिलाने में सफल रही है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा शुरू किए गए सभी कार्यक्रमों ने अपने लक्ष्यों को समय से पहले हासिल कर लिया है और यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 4 पी के मंत्र - राजनीतिक इच्छाशक्ति, सार्वजनिक खर्च, हितधारकों के साथ साझेदारी और लोगों की भागीदारी का परिणाम है।

श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि रग रग में गंगा की दूसरी श्रृंखला अर्थ-गंगा को समर्पित होगी, जिसने हमारी सभ्यता के विस्तार की नींव रखी। उन्होंने लोगों को अमृत महोत्सव की इस अवधि के दौरान गंगा के प्रति हुई अतीत की भूल को सुधारने के प्रयासों में योगदान देने का संकल्प लेने के लिए आमंत्रित किया।

पृष्ठभूमि:

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) और दूरदर्शन ने गंगा की वर्तमान स्थिति तथा उसके अतीत के गौरव को फिर से जीवंत करने की जरूरत के बारे में व्यापक जागरूकता पैदा करने के लिए आपस में भागीदारी की है।

फरवरी, 2019 में 'रग रग में गंगा', जोकि भारत की सबसे पवित्र नदी- गंगा पर आधारित एक यात्रा वृत्तांत है, का राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर एक प्रमुख कार्यक्रम के रूप में शुभारंभ किया गया था। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) द्वारा शुरू की गई 21-कड़ियों वाली इस श्रृंखला में शक्तिशाली गंगा की 2525 किलोमीटर लंबी यात्रा को उसके उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर से लेकर गंगासागर, जहां वह बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है, तक कवर किया गया। जाने-माने अभिनेता राजीव खंडेलवाल की उद्घोषणा से लैस इस यात्रा वृत्तांत में गंगा के किनारे बसे सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक महत्व के 20 शहरों को शामिल किया गया था। इस नदी से जुड़े सांस्कृतिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों और इसके किनारे बसे लोगों से जुड़े विवरणों को कवर करने के क्रम में गंगा की सफाई से जुड़े संदेश, इस नदी को साफ रखने में जनता की भागीदारी और इस नदी की सफाई व इसका कायाकल्प करने के लिए एनएमसीजी द्वारा किए जा रहे कार्यों को इस यात्रा वृत्तांत की विषय-वस्तु और प्रारूप के रूप में गुंथकर प्रस्तुत किया गया।

पिछली श्रृंखला गंगासागर में समाप्त हुई थी, जहां गंगा बंगाल की खाड़ी में मिल गई थी। इस श्रृंखला का भाग-दो मुर्शिदाबाद जिले में समाप्त हो सकता है, जहां गंगा भारत को छोड़ती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है और पद्मा नदी बन जाती है। 26 एपिसोड की इस श्रृंखला में दर्शकों को गंगा को फिर से जीवंत करने की जरूरत और इस नदी द्वारा सदियों से उन्हें दिए गए बहुमूल्य उपहारों के प्रति उनके कर्तव्यों का एहसास कराने से जुड़े कई संदेश अंतर्निहित हैं। व्यापक शोध पर आधारित, यह कार्यक्रम गंगा की स्वच्छता की दिशा में सरकार द्वारा किए गए विभिन्न उपायों के साथ-साथ इस संदर्भ में इसकी वर्तमान स्थिति के बारे में बतायेगा और लोगों से इसके लिए काम करने का आह्वान करेगा।

'रग रग में गंगा-II' में गंभीरता और मनोरंजन का एक संतुलित मिश्रण है। यह श्रृंखला शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाके को दर्शकों को गंगा की समृद्ध विरासत का स्वाद लेने के लिए प्रेरित करेगी। 'रग रग में गंगा-I' की अपार लोकप्रियता को देखते हुए, यह उम्मीद की गई है कि अनूठी और उच्च गुणवत्ता वाली यह श्रृंखला एक बार फिर दर्शकों के साथ भावनात्मक तौर पर जुड़ पायेगी। एक यात्रा वृत्तांत होने के साथ-साथ यह श्रृंखला जल संरक्षण और जल स्वच्छता (अविरलता और निर्मलता) के संदेश को फैलाने में भी मदद करेगी, जोकि समय की मांग है।

प्रसारण का समय

दूरदर्शन ने "रग रग में गंगा" की दूसरी श्रृंखला का शुभारंभ किया

Sunday 15 August 2021

बहुत कुछ कहती है पुस्तक स्वांग

 14th June 2021 at 3:33 PM

स्वाँग में नकल के ज़रिए सब असल हल्कीक्त बताने का प्रयास 

लुधियाना: 14 जून 2021: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो)::

वास्तव में जो जो भी नज़रआता है वो होता नहीं है और जो होता है वो नज़र नहीं आता। यही बन गया है आज का जीवन। यही है जीवन की हकीकत। यही है विकसित युग का सच। यही है तरक्की का अंजाम। 

स्वाँग कभी एक बेहद लोकप्रिय लोकनाटय विधा रही है बुंदेलखंड की। नाटक, नौटंकी, रामलीला से थोड़ी इतर। न मंच, न परदा, न ही कोई विशेष वेशभूषा। बस अभिनय। इस तरह के ज़ोरदार प्रयास पंजाब में भी हुए। जन नाटय से जुड़े भाई मन्ना सिंह उर्फ़ सरदार गुरशरण सिंह इस मामले में निपुण थे। राजनीती, समाज और धर्म के क्षेत्र में जो जो हो रहा है इन सभी की जितनी हकीकतें उन्होंने अपने सादगी भरे नुक्कड़ नाटकों के ज़रिए लोगों के सामने रखीं वह आज भी एक कमाल हैं। 

स्वांग नामक पुस्तक इस सब की याद भी दिलाती है। स्वाँग का मज़ा इसके असल जैसा लगने में ही तो है। एकदम असली, जो कि वहाँ सब नकली होता है: नकली राजा, नकली सिपाही, नकली कोड़े, नकली जेल, नकली साधु, काठ की तलवार, नकली दुश्मन और नकली लड़ाइयाँ। नकली नायक, नकली खलनायक। वही नायक, वही खलनायक। सब जानते हैं कि अभिनय है, नकली है सब, नाटक है यह; पर जब इसका मंचन होता है उस पल वह कितना जीवंत प्रतीत होता है। लगता है एकदम असल है सब।

लोकनाटय तो ख़ैर बहुत से स्थानों पर समय के साथ साथ डूब गए। अब बुंदेलखंड के गाँवों में स्वाँग नहीं खेला जाता। परन्तु हुआ यह है कि अब मानो पूरा समाज ही स्वाँग खेलने में व्यस्त हो गया है। सामाजिक, राजनीतिक, न्याय और कानून, इनकी व्यवस्था का सारा तंत्र ही एक विराट स्वाँग में बदल गया है। जहाँ देखो आपको इसका रूप नज़र आ ही जाएगा। यह न केवल बुंदेलखंड के बल्कि हिंदुस्तान के समूचे तंत्र के एक विराट स्वाँग में तब्दील हो जाने की कहानी है। इस तरह यह किताब एक इतिहास भी है और एक विशेष रिपोर्ट भी है। समाज को ही बताया जा रहा है समाज की असलियत का हाल।  

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