Friday 29 May 2020

हम देखेंगे//फैज़ अहमद फैज़ साहिब

जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ
रूई की तरह उड़ जाएँगे
हम देखेंगे लाज़िम है कि हम भी देखेंगे वो दिन कि जिस का वादा है जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गिराँ रूई की तरह उड़ जाएँगे हम महकूमों के पाँव-तले जब धरती धड़-धड़ धड़केगी और अहल-ए-हकम के सर-ऊपर जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी जब अर्ज़-ए-ख़ुदा के काबे से सब बुत उठवाए जाएँगे हम अहल-ए-सफ़ा मरदूद-ए-हरम मसनद पे बिठाए जाएँगे सब ताज उछाले जाएँगे सब तख़्त गिराए जाएँगे बस नाम रहेगा अल्लाह का जो ग़ाएब भी है हाज़िर भी जो मंज़र भी है नाज़िर भी उट्ठेगा अनल-हक़ का नारा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो और राज करेगी ख़ल्क़-ए-ख़ुदा जो मैं भी हूँ और तुम भी हो (--फैज़ अहमद फैज़ साहिब)

Friday 21 February 2020

निरंतर सक्रिय है लुधियाना का प्रीत साहित्य सदन

साहित्य को अभियान बनाने में जुटा साहित्य प्रेमियों का विशेष ग्रुप 
लुधियाना: 21 फरवरी 2020: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो)::
वाटसअप ग्रुप प्रीत साहित्य सदन 
साहित्य में चलती सियासत से कोसों दूर रहते हुए शुद्ध साहित्य पर अपना ध्यान केंद्रित करने वालों में से एक हैं  लुधियाना के जनाब मनोज कुमार "प्रीत"। यूं तो अक्सर साहित्यिक आयोजनों में भी दिख जाते हैं लेकिन ज़्यादातर उनका ध्यान केंद्रित रहता है "प्रीत साहित्य सदन" पर। कहने को तो यह एक वाटसअप ग्रुप ही है लेकिन वास्तव में यह एक अभियान है-साहित्य समर्पित अभियान। देश और दुनिया के अलग अलग कोनों में रहने वाले साहित्यकारों को एक  पिरोने का अभियान भी। यदि कोई सदस्य जाने अनजाने अपने सियासी प्रचार की  उसे तकरीबन तकरीबन सभी एडमिन बहुत ही प्यार से समझा देते हैं की ऐसा करने की इस ग्रुप में इज़ाज़त नहीं है। ग्रुप में हिंदी साहित्य की चर्चा भी होती है और पंजाबी साहित्य की भी। इसी ग्रुप के ज़रिये हर बार सदन की साहित्यिक बैठक के आयोजन की सूचना भी सदस्यों को दी जाती है। आम तौर पर आयोजन का स्थान भी हर बार वही होता है लुधियाना के समराला चौंक में स्थित सदन का कार्यालय। इन्हीं बैठकों में साहित्य प्रेमी मिल कर बैठते हैं। शायरी का दौर चलता है। साहित्य की चर्चा होती है और कई बार किसी न किसी पुस्तक का विमोचन भी सुनिश्चित।  प्रपत्र भी  और उन पर चर्चा भी होती है। इसी ग्रुप में देश के अन्य स्थानों पर होने वाले आयोजनों की सूचना भी दी जाती है और अन्य विवरण भी। साथ ही शायरी का प्रकाशन भी होता है और साहित्य रस से भरी नोक झोंक भी चलती है। कुल मिला कर यह ऐसा ग्रुप है जो आपको साहित्य से भी जोड़े रखता है  साहित्यकारों से भी। 
इसी ग्रुप में से जनाब सुभाष गुप्ता शफी़क़ साहिब की दो लघु काव्य रचनाएं:
अच्छा हो सकता नहीं उस बस्ती का हाल
बेसन हो सस्ता जहां महंगी चने की दाल
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बोना और फिर सींचना हम को लगे फजूल
ले आये बाजार से हम कागज के फूल
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Tuesday 7 January 2020

जे एन यू के जुगनू//रजनी शर्मा

जेएनयू के छात्रों पर हुए हमले ने साहित्य पर भी प्रभाव डाला 
हमलावरों के हमले में घायल छात्र नेता आईशी घोष 
साहित्य क्षेत्र: 7 जनवरी 2020: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो)::
कलमकार संवेदनशील होते हैं। इसीलिए उन्हें प्राकृति भी अपने सभी रहस्य बहुत आसानी से बता देती है। हर घटना उनके दिल और दिमाग पर असर करती है। जेएनयू में छात्रों पर हुए हमले ने भी उन्हें आंदोलित किया है।एक शायरा रजनी शर्मा ने इस अमानवीय घटना पर एक काव्य रचना लिखी है जिसे हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं। आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य बताएं। --रेक्टर कथूरिया 
जे एन यू के जुगनू//रजनी शर्मा
अचानक नकाबपोश
अंधेरे मे
पहुंच जाते हैं
पकड़ कर डंडे
जे एन यू  के जुगनुओं
को पकड़ने
और गेट अपने आप
खुल जाता है
ताकि अंधेरे में
 उन्हें मसला जाए
सिर फोड़
खून बहाया जाए,
जश्न मनाया जाए,
पर वो क्यों
भूल गए
झूठ की धुन्ध
ज्यादा देर नही टिकती,
सूरज निकलेगा,
फिर उड़ेंगे
ज़ख्मी पर
फिर चमकेंगे
यह जुगनू,
करेंगे अंधेरे का मुँह
और काला।
            ----!!रजनी शर्मा!!

Friday 3 January 2020

आज के विकास का असली सच बताती प्रो. गुरभजन गिल की काव्य रचना

विज्ञान से भी अधिक सच बताने का प्रयास कर रहा है साहित्य 
साहित्य क्षेत्र: 7 जनवरी 2020: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो):: 
आज के युग का विकास कितना निरथर्क और खोखला सा लगने लगा है इसकी झलक अब आज के साहित्य में भी आने लगी है। डार्विन झूठ बोलता है-एक ऐसी ही रचना है। न कोई विज्ञान, न कोई शोध कार्य लेकिन बात सीधा दिल में उतरती है और इसके लिए कोई प्रमाण भी नहीं मांगती।आप भी पढ़िये और बताईए कि आपको  कैसी लगी यह रचना? आपके विचारों की इंतजार रहेगी ही। बहुत ही गहरी बात कह रही इस काव्य रचना का बहुत ही सशक्त अनुवाद किया है प्रदीप सिंह ने। --रेक्टर कथूरिया 
डार्विन झूठ बोलता है//प्रो. गुरभजन सिंह गिल 
हम विकसित बंदर से नहीं
भेड़ से हुए हैं
भेड़ थे
भेड़ हैं
और भेड़ रहेंगे
जब तक हमें हमारी ऊन की
कीमत पता नहीं चलती।
हमें चराने वाला ही हमें काटता है।
बंदर तो बाज़ार में खरीद-फरोख्त करता
कारोबारी है।
बिना कुछ खर्च किए
मुनाफे का अधिकारी है।
हम दुश्मन नहीं पहचानते
हमारी सोच मरी है।
डार्विन से कहो!
अपने विकासवादी सिद्धांत की
फिर समीक्षा करे!
कि वक़्त बदल गया है।
            -गुरभजन गिल
अनुवाद- प्रदीप सिंह

Wednesday 1 January 2020

डा. राजेन्द्र टोकी को मिला उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान का "सौहार्द सम्मान"

पंजाब प्रदेश की खन्ना तहसील में रहते हैं राजेंद्र टोकी 
खन्ना//लुधियाना: 31 दिसंबर 2020: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो)::
उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा  पंजाब प्रदेश की खन्ना तहसील में रहने वाले सतत् स्वाध्यायशील एवं यशस्वी साहित्यकार डा. राजेन्द्र टोकी को  2 लाख रु. राशि वाला *सौहार्द सम्मान* प्रदान किया गया है।  
अपनी भलमनसाहत के लिए विख्यात डॉ. राजेन्द्र टोकी की गणना भारतीय जीवन-मूल्यों के संवाहक और लेखन व शिक्षा के प्रति आस्थावान व्यक्तित्वों में होती है। रचना, आलोचना, अनुवाद, अनुसन्धान, सम्पादन आदि उनके कृतित्त्व के कई पहलू हैं| कविता, ग़ज़ल, कहानी, निबन्ध जैसी विधाओं में रचनात्मक लेखन के 
अतिरिक्त उर्दू व पंजाबी से हिन्दी अनुवाद, सम्पादन और आलोचनाकर्म में तल्लीन रहते हुए उन्होंने लगभग 
42 पुस्तकों के माध्यम से साहित्य-भण्डार में श्रीवृद्धि की है। टोकी जी द्वारा  "ओउम् जय जगदीश हरे"  आरती के रचयिता पण्डित श्रद्धाराम फिल्लौरी पर गम्भीर अनुसन्धानपरक कार्य किया है| लुधियाना शहर के सीमान्त पर बसे 'फिल्लौर' कस्बे में रहने वाले श्रद्धाराम फिल्लौरी की हिन्दी, संस्कृत, उर्दू और पंजाबी की अनुपलब्ध रचनाओं के अन्वेषण के पश्चात् किया गया यह कार्य निश्चित ही श्रमसाध्य एवं सर्वोत्कृष्ट कार्य है। उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा राजेन्द्र टोकी जी को वर्ष-2018 के लिए "सौहार्द सम्मान" दिए जाने से ईमानदार लेखन की प्रति आस्था और उत्साह जगा है। निश्चित ही पुरस्कार की गरिमा भी बढ़ी है। इसके लिए 'उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ' की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की जानी चाहिए। राजेन्द्र टोकी जी को "सौहार्द सम्मान" मिलने पर साहित्य स्क्रीन परिवार की तरफ से भी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।