Saturday 4 September 2021

मुनादी//धर्मवीर भारती की यादगारी ऐतिहासिक रचना

 इस कविता ने उस वक्त का सच सामने रखा था 


खलक खुदा का, मुलुक बाश्शा का

हुकुम शहर कोतवाल का

हर खासो-आम को आगह किया जाता है

कि खबरदार रहें

और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से

कुंडी चढा़कर बन्द कर लें

गिरा लें खिड़कियों के परदे

और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें

क्योंकि

एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज में

सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है


शहर का हर बशर वाकिफ है

कि पच्चीस साल से मुजिर है यह

कि हालात को हालात की तरह बयान किया जाए

कि चोर को चोर और हत्यारे को हत्यारा कहा जाए

कि मार खाते भले आदमी को

और असमत लुटती औरत को

और भूख से पेट दबाये ढाँचे को

और जीप के नीचे कुचलते बच्चे को

बचाने की बेअदबी की जाये


जीप अगर बाश्शा की है तो

उसे बच्चे के पेट पर से गुजरने का हक क्यों नहीं ?

आखिर सड़क भी तो बाश्शा ने बनवायी है !

बुड्ढे के पीछे दौड़ पड़ने वाले

अहसान फरामोशों ! क्या तुम भूल गये कि बाश्शा ने

एक खूबसूरत माहौल दिया है जहाँ

भूख से ही सही, दिन में तुम्हें तारे नजर आते हैं

और फुटपाथों पर फरिश्तों के पंख रात भर

तुम पर छाँह किये रहते हैं

और हूरें हर लैम्पपोस्ट के नीचे खड़ी

मोटर वालों की ओर लपकती हैं

कि जन्नत तारी हो गयी है जमीं पर;

तुम्हें इस बुड्ढे के पीछे दौड़कर

भला और क्या हासिल होने वाला है ?


आखिर क्या दुश्मनी है तुम्हारी उन लोगों से

जो भलेमानुसों की तरह अपनी कुरसी पर चुपचाप

बैठे-बैठे मुल्क की भलाई के लिए

रात-रात जागते हैं;

और गाँव की नाली की मरम्मत के लिए

मास्को, न्यूयार्क, टोकियो, लन्दन की खाक

छानते फकीरों की तरह भटकते रहते हैं…

तोड़ दिये जाएँगे पैर

और फोड़ दी जाएँगी आँखें

अगर तुमने अपने पाँव चल कर

महल-सरा की चहारदीवारी फलाँग कर

अन्दर झाँकने की कोशिश की


क्या तुमने नहीं देखी वह लाठी

जिससे हमारे एक कद्दावर जवान ने इस निहत्थे

काँपते बुड्ढे को ढेर कर दिया ?

वह लाठी हमने समय मंजूषा के साथ

गहराइयों में गाड़ दी है

कि आने वाली नस्लें उसे देखें और

हमारी जवाँमर्दी की दाद दें


अब पूछो कहाँ है वह सच जो

इस बुड्ढे ने सड़कों पर बकना शुरू किया था ?

हमने अपने रेडियो के स्वर ऊँचे करा दिये हैं

और कहा है कि जोर-जोर से फिल्मी गीत बजायें

ताकि थिरकती धुनों की दिलकश बलन्दी में

इस बुड्ढे की बकवास दब जाए


नासमझ बच्चों ने पटक दिये पोथियाँ और बस्ते

फेंक दी है खड़िया और स्लेट

इस नामाकूल जादूगर के पीछे चूहों की तरह

फदर-फदर भागते चले आ रहे हैं

और जिसका बच्चा परसों मारा गया

वह औरत आँचल परचम की तरह लहराती हुई

सड़क पर निकल आयी है।


ख़बरदार यह सारा मुल्क तुम्हारा है

पर जहाँ हो वहीं रहो

यह बगावत नहीं बर्दाश्त की जाएगी कि

तुम फासले तय करो और

मंजिल तक पहुँचो


इस बार रेलों के चक्के हम खुद जाम कर देंगे

नावें मँझधार में रोक दी जाएँगी

बैलगाड़ियाँ सड़क-किनारे नीमतले खड़ी कर दी जाएँगी

ट्रकों को नुक्कड़ से लौटा दिया जाएगा

सब अपनी-अपनी जगह ठप

क्योंकि याद रखो कि मुल्क को आगे बढ़ना है

और उसके लिए जरूरी है कि जो जहाँ है

वहीं ठप कर दिया जाए


बेताब मत हो

तुम्हें जलसा-जुलूस, हल्ला-गूल्ला, भीड़-भड़क्के का शौक है

बाश्शा को हमदर्दी है अपनी रियाया से

तुम्हारे इस शौक को पूरा करने के लिए

बाश्शा के खास हुक्म से

उसका अपना दरबार जुलूस की शक्ल में निकलेगा

दर्शन करो !

वही रेलगाड़ियाँ तुम्हें मुफ्त लाद कर लाएँगी

बैलगाड़ी वालों को दोहरी बख्शीश मिलेगी

ट्रकों को झण्डियों से सजाया जाएगा

नुक्कड़ नुक्कड़ पर प्याऊ बैठाया जाएगा

और जो पानी माँगेगा उसे इत्र-बसा शर्बत पेश किया जाएगा

लाखों की तादाद में शामिल हो उस जुलूस में

और सड़क पर पैर घिसते हुए चलो

ताकि वह खून जो इस बुड्ढे की वजह से

बहा, वह पुँछ जाए

बाश्शा सलामत को खूनखराबा पसन्द नहीं

                              --धर्मवीर भारती  

देश में लोकनायक जयप्रकाश नारायण जनता के परिनिधि बन कर ु भरे थे सत्ता के खिलाफ। उस दौर की याद दिलाती यह कविता "मुनादी" आज भी बहुत कुछ कह रही है। हालात और भी नाज़ुक होते जा रहे हैं। ऐसे में यह रचना कालजयी साबित हो रही है। देश भर में एक हवा पैदा हो गई थी लोकनायक जे पी के पीछे पूरी जनता चल पड़ी थी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण जब घर से निकले तो फिर एक बविषाल काफिला बन गया। वह लुधियाना भी आए थे। उनकी रैलियों की कवरेज अंग्रेजी मीडिया ने बहुत नदे पैमाने पर की थी।  उनके खिलाफ सत्ता के रुख को डा. धर्मवीर भारती की यह प्रसिद्ध काव्य रचना किसी दस्तावेज़ी की तरह संभालती हुई लगातार आगे लेजा रही है। मुनादी कहते ही डी.धर्मवीर भर्ती यद् आते हैं पर साथ ही याद आते हैं जयप्रकाश नारायण और उनका आंदोलन। जे पी साहिब के उस नाज़ुक दौर से चलती हुई यह बात बहुत कुछ याद दिलाती है और किसान आंदोलन तक इस काव्य रचना को एक बार फिर प्रासंगिक क्र देती है। इस पर विस्तृत चर्चा जल्द ही की जाएगी किसी अलग पोस्ट में फ़िलहाल इतना ही कि भारती जी की यह रचना आज भी अमर है। आज भी प्रासंगिक है। यह आज भी बहुत कुछ कह रही है। -सम्पादक:साहित्य स्क्रीन 

Tuesday 17 August 2021

दूरदर्शन ने "रग रग में गंगा" की दूसरी श्रृंखला का शुभारंभ किया

प्रविष्टि तिथि: 16 AUG 2021 6:32PM by PIB Delhi                       

‘रग रग में गंगा’की पहली श्रृंखला को 1.75 करोड़ लोगों ने देखा था

दूरदर्शन ने यात्रा-वृत्तांत कार्यक्रम "रग रग में गंगा" की दूसरी श्रृंखला का शुभारंभ किया

दूरदर्शन चार साल में सबसे अधिक देखा जाने वाला चैनल बन जाएगा- श्री अनुराग ठाकुर

अपनी तरह की लम्बी नदियों में, गंगा दुनिया की शीर्ष 10 सबसे स्वच्छ नदियों में एक है-

  

 
श्री गजेंद्र सिंह शेखावत का विशेष समाचार लेख 

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री अनुराग ठाकुर ने आज केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत और केंद्रीय जल शक्ति एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल के साथ सफल यात्रा-वृत्तांत कार्यक्रम, ‘रग रग में गंगा’की दूसरी श्रृंखला का अनावरण किया।

इस अवसर पर मंत्री ने कहा कि दूसरी श्रृंखला का शुभारंभ ही अपने आप में पहली श्रृंखला की सफलता का पैमाना है, जिसे लगभग 1.75 करोड़ दर्शकों ने देखा था। मंत्री ने कार्यक्रम की टीम को बधाई दी और कहा कि दूसरी श्रृंखला से उम्मीदें अधिक हैं; यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि जनभागीदारी से जन आंदोलन तक का एक प्रयास है।

गंगा के कायाकल्प में योगदान देने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हुए मंत्री ने कहा कि गंगा का सभी भारतीयों के साथ भावनात्मक जुड़ाव है। भारतीयों के साथ गंगा का आध्यात्मिक संबंध होने के साथ-साथ इसका बहुत बड़ा आर्थिक महत्व भी है। मंत्री ने ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि आज की जलवायु चुनौतियों से निपटने के प्रयासों में बच्चों को भागीदार बनाया जाना चाहिए।         

मंत्री महोदय ने कहा कि अगले तीन-चार साल में दूरदर्शन सबसे अधिक देखा जाने वाला चैनल बन जाएगा। उन्होंने कहा कि चैनल दूरदर्शन के दर्शकों की संख्या को बढ़ाने के लिए उचित सामग्री का निर्माण करेगा।

श्री ठाकुर ने आज़ादी के अमृत महोत्सव से शताब्दी समारोह तक के लिए विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के तहत किए जा रहे प्रयासों में भाग लेने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हुए, सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान को दोहराया।

रग रग में गंगा यात्रा-वृत्तांत की दूसरी श्रृंखला में इस महान नदी के सांस्कृतिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक विवरणों को शामिल किया जाएगा तथा यह निर्मलता व अविरलता के विषय पर केंद्रित होगा। यात्रा वृत्तांत एनएमसीजी द्वारा गंगा को बचाने के लिए किए जा रहे कार्यों को भी स्थापित करेगा और एनएमसीजी के सहयोग से इसे दूरदर्शन पर एक यात्रा वृत्तांत श्रृंखला 'रग रग में गंगा' के दूसरे सीजन को फिर से लेकर आएगा। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गंगा नदी की भव्यता और इसके संरक्षण की आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करना है। काव्यात्मक रूप से फिल्माई गई श्रृंखला नदी की भव्यता और उसके परिदृश्य को गंगा नदी की आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक विरासत और इसकी वर्तमान इकोलोजिकल स्थिति का लेखा-जोखा प्रस्तुत करेगी। यात्रा वृत्तांत, जिसमें 26 एपिसोड शामिल हैं, इस कार्यक्रम के एंकर जाने-माने अभिनेता राजीव खंडेलवाल है और 21 अगस्त 2021 से प्रत्येक शनिवार और रविवार को रात 8:30 बजे दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर प्रसारित किया जाएगा।

श्रोताओं को संबोधित करते हुए केन्द्रीय मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि सरकार तीन साल की छोटी सी अवधि में इतनी लंबी गंगा नदी को दस सबसे अधिक स्वच्छ नदियों में स्थान दिलाने में सफल रही है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा शुरू किए गए सभी कार्यक्रमों ने अपने लक्ष्यों को समय से पहले हासिल कर लिया है और यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 4 पी के मंत्र - राजनीतिक इच्छाशक्ति, सार्वजनिक खर्च, हितधारकों के साथ साझेदारी और लोगों की भागीदारी का परिणाम है।

श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि रग रग में गंगा की दूसरी श्रृंखला अर्थ-गंगा को समर्पित होगी, जिसने हमारी सभ्यता के विस्तार की नींव रखी। उन्होंने लोगों को अमृत महोत्सव की इस अवधि के दौरान गंगा के प्रति हुई अतीत की भूल को सुधारने के प्रयासों में योगदान देने का संकल्प लेने के लिए आमंत्रित किया।

पृष्ठभूमि:

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) और दूरदर्शन ने गंगा की वर्तमान स्थिति तथा उसके अतीत के गौरव को फिर से जीवंत करने की जरूरत के बारे में व्यापक जागरूकता पैदा करने के लिए आपस में भागीदारी की है।

फरवरी, 2019 में 'रग रग में गंगा', जोकि भारत की सबसे पवित्र नदी- गंगा पर आधारित एक यात्रा वृत्तांत है, का राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर एक प्रमुख कार्यक्रम के रूप में शुभारंभ किया गया था। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) द्वारा शुरू की गई 21-कड़ियों वाली इस श्रृंखला में शक्तिशाली गंगा की 2525 किलोमीटर लंबी यात्रा को उसके उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर से लेकर गंगासागर, जहां वह बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है, तक कवर किया गया। जाने-माने अभिनेता राजीव खंडेलवाल की उद्घोषणा से लैस इस यात्रा वृत्तांत में गंगा के किनारे बसे सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक महत्व के 20 शहरों को शामिल किया गया था। इस नदी से जुड़े सांस्कृतिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों और इसके किनारे बसे लोगों से जुड़े विवरणों को कवर करने के क्रम में गंगा की सफाई से जुड़े संदेश, इस नदी को साफ रखने में जनता की भागीदारी और इस नदी की सफाई व इसका कायाकल्प करने के लिए एनएमसीजी द्वारा किए जा रहे कार्यों को इस यात्रा वृत्तांत की विषय-वस्तु और प्रारूप के रूप में गुंथकर प्रस्तुत किया गया।

पिछली श्रृंखला गंगासागर में समाप्त हुई थी, जहां गंगा बंगाल की खाड़ी में मिल गई थी। इस श्रृंखला का भाग-दो मुर्शिदाबाद जिले में समाप्त हो सकता है, जहां गंगा भारत को छोड़ती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है और पद्मा नदी बन जाती है। 26 एपिसोड की इस श्रृंखला में दर्शकों को गंगा को फिर से जीवंत करने की जरूरत और इस नदी द्वारा सदियों से उन्हें दिए गए बहुमूल्य उपहारों के प्रति उनके कर्तव्यों का एहसास कराने से जुड़े कई संदेश अंतर्निहित हैं। व्यापक शोध पर आधारित, यह कार्यक्रम गंगा की स्वच्छता की दिशा में सरकार द्वारा किए गए विभिन्न उपायों के साथ-साथ इस संदर्भ में इसकी वर्तमान स्थिति के बारे में बतायेगा और लोगों से इसके लिए काम करने का आह्वान करेगा।

'रग रग में गंगा-II' में गंभीरता और मनोरंजन का एक संतुलित मिश्रण है। यह श्रृंखला शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाके को दर्शकों को गंगा की समृद्ध विरासत का स्वाद लेने के लिए प्रेरित करेगी। 'रग रग में गंगा-I' की अपार लोकप्रियता को देखते हुए, यह उम्मीद की गई है कि अनूठी और उच्च गुणवत्ता वाली यह श्रृंखला एक बार फिर दर्शकों के साथ भावनात्मक तौर पर जुड़ पायेगी। एक यात्रा वृत्तांत होने के साथ-साथ यह श्रृंखला जल संरक्षण और जल स्वच्छता (अविरलता और निर्मलता) के संदेश को फैलाने में भी मदद करेगी, जोकि समय की मांग है।

प्रसारण का समय

दूरदर्शन ने "रग रग में गंगा" की दूसरी श्रृंखला का शुभारंभ किया

Sunday 15 August 2021

बहुत कुछ कहती है पुस्तक स्वांग

 14th June 2021 at 3:33 PM

स्वाँग में नकल के ज़रिए सब असल हल्कीक्त बताने का प्रयास 

लुधियाना: 14 जून 2021: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो)::

वास्तव में जो जो भी नज़रआता है वो होता नहीं है और जो होता है वो नज़र नहीं आता। यही बन गया है आज का जीवन। यही है जीवन की हकीकत। यही है विकसित युग का सच। यही है तरक्की का अंजाम। 

स्वाँग कभी एक बेहद लोकप्रिय लोकनाटय विधा रही है बुंदेलखंड की। नाटक, नौटंकी, रामलीला से थोड़ी इतर। न मंच, न परदा, न ही कोई विशेष वेशभूषा। बस अभिनय। इस तरह के ज़ोरदार प्रयास पंजाब में भी हुए। जन नाटय से जुड़े भाई मन्ना सिंह उर्फ़ सरदार गुरशरण सिंह इस मामले में निपुण थे। राजनीती, समाज और धर्म के क्षेत्र में जो जो हो रहा है इन सभी की जितनी हकीकतें उन्होंने अपने सादगी भरे नुक्कड़ नाटकों के ज़रिए लोगों के सामने रखीं वह आज भी एक कमाल हैं। 

स्वांग नामक पुस्तक इस सब की याद भी दिलाती है। स्वाँग का मज़ा इसके असल जैसा लगने में ही तो है। एकदम असली, जो कि वहाँ सब नकली होता है: नकली राजा, नकली सिपाही, नकली कोड़े, नकली जेल, नकली साधु, काठ की तलवार, नकली दुश्मन और नकली लड़ाइयाँ। नकली नायक, नकली खलनायक। वही नायक, वही खलनायक। सब जानते हैं कि अभिनय है, नकली है सब, नाटक है यह; पर जब इसका मंचन होता है उस पल वह कितना जीवंत प्रतीत होता है। लगता है एकदम असल है सब।

लोकनाटय तो ख़ैर बहुत से स्थानों पर समय के साथ साथ डूब गए। अब बुंदेलखंड के गाँवों में स्वाँग नहीं खेला जाता। परन्तु हुआ यह है कि अब मानो पूरा समाज ही स्वाँग खेलने में व्यस्त हो गया है। सामाजिक, राजनीतिक, न्याय और कानून, इनकी व्यवस्था का सारा तंत्र ही एक विराट स्वाँग में बदल गया है। जहाँ देखो आपको इसका रूप नज़र आ ही जाएगा। यह न केवल बुंदेलखंड के बल्कि हिंदुस्तान के समूचे तंत्र के एक विराट स्वाँग में तब्दील हो जाने की कहानी है। इस तरह यह किताब एक इतिहास भी है और एक विशेष रिपोर्ट भी है। समाज को ही बताया जा रहा है समाज की असलियत का हाल।  

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Friday 16 July 2021

मुंशी प्रेमचंद जी की स्मृति में विशेष गोष्ठी शनिवार को

 महिला काव्य मंच लुधियाना का विशेष आयोजन 17 जुलाई को 


लुधियाना: 16 जुलाई 2021 (कार्तिका सिंह//साहित्य स्क्रीन)::

कोई ज़माना था जब किसी न किसी बड़े संस्थान के हाल या खुले प्रांगण में साहित्य की चर्चा भी हुआ करती थी हुए साहित्य की रचनाओं को भी पढ़ा सुना जाता था। साथ में देश और दुनिया की चर्चा भी चला करती थी और साथ ही समोसा, गुलाब जामुन और चाय का दौर भी चला करता था। जब से कोरोना का यह भयानक प्रकोप शुरू हुआ तब से लॉकडाऊन ने सारे के  सारे हालात ही बदल दिए। सिर्फ हालात ही नहीं सभी रीति रिवाज भी बदल दिए। पहले की तरह आयोजन अब भी होते हैं लेकिन न तो अब आप गले मिल सकते हैं न ही हाथ मिला सकते हैं न ही सट कर साथ साथ बैठ सकते हैं। कोविड के नियमों की पालना सख्ती से होने लगी है। आप अपने अपने घर में बैठते हैं और अपने फोन, कम्प्यूटर या लैपटॉप का कैमरा खोलते हैं और अपनी बरी आने पर शुरू हो जाते हैं बिलकुल उसी तरह जैसे किसी हाल या प्रांगण में बोलै करते थे।  

इस बार 17 जुलाई 2021 के लिए एडवांस में ही शुभ संध्या कहते हुए पूनम सपरा और उनकी सहयोगी टीम की अन्य न मान्यवर सदस्यों ने आप को निमंत्रित किया है उनके ऑनलाइन साहित्यिक आयोजन को देखने सुनने के लिए। 

17 जुलाई को होने वाली मुंशी प्रेमचंद स्मृति काव्य/कथा गोष्ठी के लिए जिस जिस को भी बुलाया गया है उसे निम्न क्रमांक के अनुसार बुलाया जाएगा। निवेदन किया गया है कि आप सभी अपनी अपनी एक ही रचना के साथ तैयार रहें। रचना बिना किसी भूमिका के पढ़ें और तीन/चार मिनट से ज्यादा समय न लें।

प्रतिभागियों के नाम इस प्रकार रहेंगे:1. शालू, 2. शैली वधवा,3. मोनिका कटारिया, 4. पूर्वा सिंह (लघुकथा),  5. डॉ. मोनिका शर्मा, 6. श्रद्धा शुक्ला, 7. नीलू ठाकुर, 8. रश्मि अस्थाना (लघुकथा), 9.मोनिका चौधरी, 10. शालिनी मित्तल, 11.राधा शर्मा, 12.सीमा वर्मा (लघुकथा),13. रचना गुलाटी,14. सविता खोसला,15. अनुराधा कटारिया,16.नैंसी शर्मा (लघुकथा), 17.विभा कुमारिया शर्मा, 18. अर्चना खापरान, 19. ममता जैन, 20.पूनम सपरा(समीक्षा), 21. डा. मोनिका शर्मा डोगरा, 22.श्रुति, 23.ममता वढेरा, 24.क्षमा लाल गुप्ता (समीक्षा), 25. इरादीप त्रेहन, 26.बेनु सतीशकांत, 27.सीमा भाटिया, 28.सवीना वर्मा सवी।  इस अवसर पर मंच संचालन करने की ज़िम्मेदारी  छाया शर्मा और श्रद्धा शुक्ला की रहेगी। 

जब लोग घरों में बैठे बैठे अपने अपने अकेलेपन और उदासी से दो चार हो रहे हैं उस माहौल में लोगों को मानसिक तौर पर नया उत्साह देने के लिए यह एक विशेष अर्थपूर्ण प्रयास है। यह साहित्य को अमीर तो करेगा ही साथ ही दूरियों के इस ज़माने में भी लोगों को एक दुसरे के नज़दीक ले कर आएगा। 

आपको यह आयोजन कैसा लगेगा इसे बताना न भूलें। --कार्तिका सिंह 

Sunday 27 June 2021

"नारीवादी निगाह से" गंभीर मुद्दे हैं निवेदिता मेनन की इस पुस्तक में

 14th June 2021 at 3:33 PM

 बहुत सी समस्याओं को उठाती है निवेदिता मेनन की यह पुस्तक 


नई दिल्ली//लुधियाना//:27 जून 2021: (साहित्य स्क्रीन डेस्क):: 

विवाह होता है तो इस को बहुत ही शगुन भरा घटनाक्रम माना जाता है। लेकिन इसे कभी भी नारीवादी नज़रिये से देखा ही नहीं गया। एक लड़की को उसके घर परिवार से अलग कर के कोई बेगाना घर अपनाने की रस्म है विवाह जिसमें लड़की को लाने वाले ढोल बजाते हैं जैसे अपना जय घोष कर रहे हों। यहीं से शुरू हो जाती है नारी की क़ुरबानी। कई बार तो उसका नाम भी बदल दिया जाता है। लड़की के साथ साथ खुले या छुपे रूप में दहेज की मांग भी की जाती है। पितृसत्ता के दौर में इस सारे घटनाक्रम को नाम दिया जाता है कि लड़की का घर बसा दिया। नारी के जीवन में, उसकी मानसिकता में कितनी उलझनें पैदा होती हैं यह वही जानती है। समाज तो बस दूर से तमाशा ही देखता है। आम तौर पर इस सारे दर्द को नज़र अंदाज़ भी कर दिया जाता है। निवेदिता मेनन ने "सीइंग लाईक ए फेमिनिस्ट" अंग्रेजी में इन्हीं बहुत से सवालों को ले कर लिखी थी। अंग्रेजी की अपनी पहुँच है लेकिन बहुत से लोग हैं जो हिंदी को पसंद करते हैं। अच्छा हो इसका पंजाबी अनुवाद भी प्रकाशित हो। हिंदी में जह छपा है "नारीवादी निगाह से" और बहुत तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है।  

इस किताब की बुनियादी दलील नारीवाद को पितृसत्ता पर अन्तिम विजय का जयघोष सिद्ध नहीं करती। इसके बजाय वह समाज के एक क्रमिक लेकिन निर्णायक रूपान्तरण पर ज़ोर देती है ताकि प्रदत्त अस्मिता के पुरातन चिह्नों की प्रासंगिकता हमेशा के लिए ख़त्म हो जाए। नारीवादी निगाह से देखने का आशय है मुख्यधारा तथा नारीवाद, दोनों की पेचीदगियों को लक्षित करना। यहाँ जैविक शरीर की निर्मिति, जाति-आधारित राजनीति द्वारा मुख्यधारा के नारीवाद की आलोचना, समान नागरिक संहिता, यौनिकता और यौनेच्छा, घरेलू श्रम के नारीवादीकरण तथा पितृसत्ता की छाया में पुरुषत्व के निर्माण जैसे मुद्दों की पड़ताल की गई है। एक तरह से यह किताब भारत की नारीवादी राजनीति में लम्बे समय से चली आ रही इस समझ को दोबारा केन्द्र में लाने का जतन करती है कि नारीवाद का सरोकार केवल ‘महिलाओं’ से नहीं है। इसके उलट, यह किताब बताती है कि नारीवादी राजनीति में कई प्रकार की सत्ता-संरचनाएँ सक्रिय हैं जो इस राजनीति का मुहावरा एक दूसरे से अलग-अलग बिन्दुओं पर अन्तःक्रिया करते हुए गढ़ती हैं।

पेपरबैक संस्करण 240 पेज का है और कीमत है 275/- रुपए।  जिल्द का डीलक्स एडिशन है 299/-रुपए का।इसका हिंदी अनुवाद बहुत सुंदर है और इस ज़िम्मेदारी को निभाया है नरेश गोस्वामी ने। 

पुस्तक चर्चा के लिए आप भी पुस्तकें, पुस्तक रिलीज़ निमंत्रण, आयोजन की खबरें, आयोजन की रिपोर्टें और तस्वीरें भेज सकते हैं। कवरेज टीम को बुलाने के लिए अग्रिम सूचना आवश्यक है। इस मकसद के लिए फोन और ईमेल दोनों से सम्पर्क कर सकते हैं। 

ईमेल है: medialink32@gmail.com और WhatsApp है:+919915322407