Sunday 15 August 2021

बहुत कुछ कहती है पुस्तक स्वांग

 14th June 2021 at 3:33 PM

स्वाँग में नकल के ज़रिए सब असल हल्कीक्त बताने का प्रयास 

लुधियाना: 14 जून 2021: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो)::

वास्तव में जो जो भी नज़रआता है वो होता नहीं है और जो होता है वो नज़र नहीं आता। यही बन गया है आज का जीवन। यही है जीवन की हकीकत। यही है विकसित युग का सच। यही है तरक्की का अंजाम। 

स्वाँग कभी एक बेहद लोकप्रिय लोकनाटय विधा रही है बुंदेलखंड की। नाटक, नौटंकी, रामलीला से थोड़ी इतर। न मंच, न परदा, न ही कोई विशेष वेशभूषा। बस अभिनय। इस तरह के ज़ोरदार प्रयास पंजाब में भी हुए। जन नाटय से जुड़े भाई मन्ना सिंह उर्फ़ सरदार गुरशरण सिंह इस मामले में निपुण थे। राजनीती, समाज और धर्म के क्षेत्र में जो जो हो रहा है इन सभी की जितनी हकीकतें उन्होंने अपने सादगी भरे नुक्कड़ नाटकों के ज़रिए लोगों के सामने रखीं वह आज भी एक कमाल हैं। 

स्वांग नामक पुस्तक इस सब की याद भी दिलाती है। स्वाँग का मज़ा इसके असल जैसा लगने में ही तो है। एकदम असली, जो कि वहाँ सब नकली होता है: नकली राजा, नकली सिपाही, नकली कोड़े, नकली जेल, नकली साधु, काठ की तलवार, नकली दुश्मन और नकली लड़ाइयाँ। नकली नायक, नकली खलनायक। वही नायक, वही खलनायक। सब जानते हैं कि अभिनय है, नकली है सब, नाटक है यह; पर जब इसका मंचन होता है उस पल वह कितना जीवंत प्रतीत होता है। लगता है एकदम असल है सब।

लोकनाटय तो ख़ैर बहुत से स्थानों पर समय के साथ साथ डूब गए। अब बुंदेलखंड के गाँवों में स्वाँग नहीं खेला जाता। परन्तु हुआ यह है कि अब मानो पूरा समाज ही स्वाँग खेलने में व्यस्त हो गया है। सामाजिक, राजनीतिक, न्याय और कानून, इनकी व्यवस्था का सारा तंत्र ही एक विराट स्वाँग में बदल गया है। जहाँ देखो आपको इसका रूप नज़र आ ही जाएगा। यह न केवल बुंदेलखंड के बल्कि हिंदुस्तान के समूचे तंत्र के एक विराट स्वाँग में तब्दील हो जाने की कहानी है। इस तरह यह किताब एक इतिहास भी है और एक विशेष रिपोर्ट भी है। समाज को ही बताया जा रहा है समाज की असलियत का हाल।  

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