Friday, 3 January 2020

आज के विकास का असली सच बताती प्रो. गुरभजन गिल की काव्य रचना

विज्ञान से भी अधिक सच बताने का प्रयास कर रहा है साहित्य 
साहित्य क्षेत्र: 7 जनवरी 2020: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो):: 
आज के युग का विकास कितना निरथर्क और खोखला सा लगने लगा है इसकी झलक अब आज के साहित्य में भी आने लगी है। डार्विन झूठ बोलता है-एक ऐसी ही रचना है। न कोई विज्ञान, न कोई शोध कार्य लेकिन बात सीधा दिल में उतरती है और इसके लिए कोई प्रमाण भी नहीं मांगती।आप भी पढ़िये और बताईए कि आपको  कैसी लगी यह रचना? आपके विचारों की इंतजार रहेगी ही। बहुत ही गहरी बात कह रही इस काव्य रचना का बहुत ही सशक्त अनुवाद किया है प्रदीप सिंह ने। --रेक्टर कथूरिया 
डार्विन झूठ बोलता है//प्रो. गुरभजन सिंह गिल 
हम विकसित बंदर से नहीं
भेड़ से हुए हैं
भेड़ थे
भेड़ हैं
और भेड़ रहेंगे
जब तक हमें हमारी ऊन की
कीमत पता नहीं चलती।
हमें चराने वाला ही हमें काटता है।
बंदर तो बाज़ार में खरीद-फरोख्त करता
कारोबारी है।
बिना कुछ खर्च किए
मुनाफे का अधिकारी है।
हम दुश्मन नहीं पहचानते
हमारी सोच मरी है।
डार्विन से कहो!
अपने विकासवादी सिद्धांत की
फिर समीक्षा करे!
कि वक़्त बदल गया है।
            -गुरभजन गिल
अनुवाद- प्रदीप सिंह

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