कविता कुम्भ के इतिहास पर एक संक्षिप्त सी नज़र
लुधियाना: 21 फरवरी 2019: (एकता पूजा शर्मा//साहित्य स्क्रीन टीम)::
यही लुधियाना था--यही दुनिया थी--इसी तरह का माहौल था जब जंग की बात करते हुए जनाब साहिर लुधियानवी साहिब ने लिखा था:
खामोश ज़मीं के सीने में, खैमों की तनाबें गड़ने लगीं
मक्खन-सी मुलायम राहों पर बूटों की खराशें पड़ने लगीं
फौजों के भयानक बैंड तले चर्खों की सदायें डूब गईं
जीपों की सुलगती धूल तले फूलों की क़बायें डूब गईं
इनसान की कीमत गिरने लगी, अजनास के भाओ चढ़ने लगे
चौपाल की रौनक घटने लगी, भरती के दफ़ातर बढ़ने लगे
बस्ती के सजीले शोख जवाँ, बन-बन के सिपाही जाने लगे
जिस राह से कम ही लौट सके उस राह पे राही जाने लगे
इन जाने वाले दस्तों में ग़ैरत भी गई, बरनाई भी
माओं के जवां बेटे भी गये बहनों के चहेते भाई भी
बस्ती पे उदासी छाने लगी, मेलों की बहारें ख़त्म हुई
आमों की लचकती शाखों से झूलों की कतारें ख़त्म हुई
धूल उड़ने लगी बाज़ारों में, भूख उगने लगी खलियानों में
हर चीज़ दुकानों से उठकर, रूपोश हुई तहखानों मेंआज फिर जंग का माहौल बनाया जा रहा है। बदले के नारे लग रहे हैं। नफरत की आग बरस रही है। गोलियों और बम धमाकों में एक बार फिर चरखे की सदायें दम तोड़ रही हैं। उस संवेदनशील समय में भी कविता कुम्भ-4 का आयोजन अपने पूर्वघोषित कार्यकम के अनुसार हो रहा है। एक उम्मीद के साथ कि शायद हम इंसान कहलाने वालों में इंसानियत जाग उठे।
इस वर्ष का कविता कुम्भ-4 रविवार 24 फरवरी को करवाया जा रहा है।
दिनांक 24 फरवरी 2019 को अदारा शब्द जोत की तरफ से करवाया जा रहा है।
जिसमें नए उभरते कवि हिस्सा लेंगे।
जिसका आग़ाज़ आज से 4 वर्ष पूर्व 2016 में जनमेजा सिंह जौहल जी, रविंदर रवि जी और प्रभजोत सोही जी ने कविता को पहचान देने के उद्देश्य से किया था जिसमें अब मीत अनमोल जी का नाम भी शामिल हो चुका है। इसमें शुरू से ही कवियों की गिनती 52 रखी जाती है और पंजाब भर से चुनिंदा कवियों को आमंत्रित किया जाता है।इसका मुख्य उद्देश्य केवल और केवल कविता ही है। यही एक ऐसा मंच है जहां कोई भी प्रधानगी मण्डल मंच पर नहीं बिठाया जाता। यहाँ केवल कवि ही मंच पर अपनी कविताएँ पेश करते हैं और बाक़ी सभी लोग उसका आनन्द उठाते हैं। इसका उद्देश्य लोगों को कविता से जोड़ना है और केवल यही एक ऐसा मंच है जो केवल कविता को समर्पित है। कविता चाहे किसी भी भाषा में हो अपना जादू बिखेरती है। इस बार 2019 का यह कुम्भ त्रिभाषीय होगा। जहाँ पंजाबी के साथ साथ हिन्दी और उर्दू के कवि भी अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा कर इसमें चार चाँद लगाएंगे। इस साल तो शब्द जोत वालों ने एक और नया कदम उठाया है कि जो भी कविताएँ कविता कुम्भ में पेश की जाएंगी वो सभी कवियों के नाम के साथ कविता कुम्भ की किताब में प्रकाशित होंगी। जो कि कवियों के लिए एक नया तोहफ़ा है।
2017 में इसकी समीक्षक थीं नीतू अरोड़ा जी
2018 में समीक्षक के रूप में स्वर्णजीत सवी जी आमंत्रित थे
2019 में समीक्षक डॉ. सरबजीत सिंह जी हैं।
तो इस वर्ष के कविता कुम्भ का आनन्द उठाने के लिए अदारा शब्द जोत आपका हार्दिक अभिनन्दन करता है। उम्मीद है कि इस वर्ष भी कविता और कवियों को लुधियाना पहले से भी ज़्यादा प्यार और सम्मान देगा।
आखिर फिर साहिर साहिब की लम्बी नज़्म परछाईयां की कुछ पंक्तियाँ:
यह सर ज़मीन है गौतम की और नानक की,
इस अर्ज़े-पाक पे वहशी न चल सकेंगे कभी।
हमारा खून अमानत है नस्ले-नौ के लिए,
हमारे खून पे लश्कर न पल सकेंगे कभी॥
कहो कि आज भी हम सब अगर खामोश रहे,
तो इस दमकते हुए खाकदाँ की खैर नहीं।
जुनूँ की ढाली हुई ऐटमी बलाओं से,
ज़मीं की खैर नहीं आसमाँ की खैर नहीं॥
गुज़श्ता जंग में घर ही जले मगर इस बार,
अजब नहीं कि ये तनहाइयाँ भी जल जायें।
गुज़श्ता जंग में पैकर जले मगर इस बार,
अजब नहीं कि ये परछाइयाँ भी जल जायें॥
लुधियाना: 21 फरवरी 2019: (एकता पूजा शर्मा//साहित्य स्क्रीन टीम)::
यही लुधियाना था--यही दुनिया थी--इसी तरह का माहौल था जब जंग की बात करते हुए जनाब साहिर लुधियानवी साहिब ने लिखा था:
खामोश ज़मीं के सीने में, खैमों की तनाबें गड़ने लगीं
मक्खन-सी मुलायम राहों पर बूटों की खराशें पड़ने लगीं
फौजों के भयानक बैंड तले चर्खों की सदायें डूब गईं
जीपों की सुलगती धूल तले फूलों की क़बायें डूब गईं
इनसान की कीमत गिरने लगी, अजनास के भाओ चढ़ने लगे
चौपाल की रौनक घटने लगी, भरती के दफ़ातर बढ़ने लगे
बस्ती के सजीले शोख जवाँ, बन-बन के सिपाही जाने लगे
जिस राह से कम ही लौट सके उस राह पे राही जाने लगे
इन जाने वाले दस्तों में ग़ैरत भी गई, बरनाई भी
माओं के जवां बेटे भी गये बहनों के चहेते भाई भी
बस्ती पे उदासी छाने लगी, मेलों की बहारें ख़त्म हुई
आमों की लचकती शाखों से झूलों की कतारें ख़त्म हुई
धूल उड़ने लगी बाज़ारों में, भूख उगने लगी खलियानों में
हर चीज़ दुकानों से उठकर, रूपोश हुई तहखानों मेंआज फिर जंग का माहौल बनाया जा रहा है। बदले के नारे लग रहे हैं। नफरत की आग बरस रही है। गोलियों और बम धमाकों में एक बार फिर चरखे की सदायें दम तोड़ रही हैं। उस संवेदनशील समय में भी कविता कुम्भ-4 का आयोजन अपने पूर्वघोषित कार्यकम के अनुसार हो रहा है। एक उम्मीद के साथ कि शायद हम इंसान कहलाने वालों में इंसानियत जाग उठे।
इस वर्ष का कविता कुम्भ-4 रविवार 24 फरवरी को करवाया जा रहा है।
दिनांक 24 फरवरी 2019 को अदारा शब्द जोत की तरफ से करवाया जा रहा है।
जिसमें नए उभरते कवि हिस्सा लेंगे।
जिसका आग़ाज़ आज से 4 वर्ष पूर्व 2016 में जनमेजा सिंह जौहल जी, रविंदर रवि जी और प्रभजोत सोही जी ने कविता को पहचान देने के उद्देश्य से किया था जिसमें अब मीत अनमोल जी का नाम भी शामिल हो चुका है। इसमें शुरू से ही कवियों की गिनती 52 रखी जाती है और पंजाब भर से चुनिंदा कवियों को आमंत्रित किया जाता है।इसका मुख्य उद्देश्य केवल और केवल कविता ही है। यही एक ऐसा मंच है जहां कोई भी प्रधानगी मण्डल मंच पर नहीं बिठाया जाता। यहाँ केवल कवि ही मंच पर अपनी कविताएँ पेश करते हैं और बाक़ी सभी लोग उसका आनन्द उठाते हैं। इसका उद्देश्य लोगों को कविता से जोड़ना है और केवल यही एक ऐसा मंच है जो केवल कविता को समर्पित है। कविता चाहे किसी भी भाषा में हो अपना जादू बिखेरती है। इस बार 2019 का यह कुम्भ त्रिभाषीय होगा। जहाँ पंजाबी के साथ साथ हिन्दी और उर्दू के कवि भी अपनी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा कर इसमें चार चाँद लगाएंगे। इस साल तो शब्द जोत वालों ने एक और नया कदम उठाया है कि जो भी कविताएँ कविता कुम्भ में पेश की जाएंगी वो सभी कवियों के नाम के साथ कविता कुम्भ की किताब में प्रकाशित होंगी। जो कि कवियों के लिए एक नया तोहफ़ा है।
2017 में इसकी समीक्षक थीं नीतू अरोड़ा जी
2018 में समीक्षक के रूप में स्वर्णजीत सवी जी आमंत्रित थे
2019 में समीक्षक डॉ. सरबजीत सिंह जी हैं।
तो इस वर्ष के कविता कुम्भ का आनन्द उठाने के लिए अदारा शब्द जोत आपका हार्दिक अभिनन्दन करता है। उम्मीद है कि इस वर्ष भी कविता और कवियों को लुधियाना पहले से भी ज़्यादा प्यार और सम्मान देगा।
आखिर फिर साहिर साहिब की लम्बी नज़्म परछाईयां की कुछ पंक्तियाँ:
यह सर ज़मीन है गौतम की और नानक की,
इस अर्ज़े-पाक पे वहशी न चल सकेंगे कभी।
हमारा खून अमानत है नस्ले-नौ के लिए,
हमारे खून पे लश्कर न पल सकेंगे कभी॥
कहो कि आज भी हम सब अगर खामोश रहे,
तो इस दमकते हुए खाकदाँ की खैर नहीं।
जुनूँ की ढाली हुई ऐटमी बलाओं से,
ज़मीं की खैर नहीं आसमाँ की खैर नहीं॥
गुज़श्ता जंग में घर ही जले मगर इस बार,
अजब नहीं कि ये तनहाइयाँ भी जल जायें।
गुज़श्ता जंग में पैकर जले मगर इस बार,
अजब नहीं कि ये परछाइयाँ भी जल जायें॥
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