Wednesday, 18 July 2018

गज़ल/रेक्टर कथूरिया

न तू जाना न अन्जाना लगता है!
अपना है तो क्यूँ बेगाना लगता है!

लगता है फिर दिल की शामत आई है;
इसको उसका साथ सुहाना लगता है!

उसका न कोई दोस्त, न कोई दुश्मन है;
उसका तो हर एक दीवाना लगता है!

वक्त की मरहम सब जख्मों को भरती है;
पर इसको भी एक ज़माना लगता है!

ज़िक्र चला जब उसका आंसू छलक पड़े;
यह तो कोई जख्म पुराना लगता है!

तू न शामिल हो तो बात नहीं बनती;
महफिल में हर एक बेगाना लगता है!

उसका साथ न हो तो रंग नहीं जमता;
वो हो तो हर रंग सुहाना लगता है!  

प्यार है सच्चा तो फिर कैसी मजबूरी;
यह तो तेरा नया बहाना लगता है!

मालूम है अंजाम हमें उम्मीदों का;
फिर भी आस लगाना अच्छा लगता है!
             -रेक्टर कथूरिया (03 दिसम्बर 1989)     

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