First Published on Tuesday 27th May 2023 at 5:45 PM Updated By Krishan Kumar Naaz on 14th February 2025
जनाब कृष्ण कुमार नाज़ साहिब ने बताई नूर साहिब की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी नई बातें
उनकी शायरी ज़िंदगी की कठिनइयों से हमेशां रूबरू रही
तो आजकल के दौर की ज़िंदगी की सभी मुश्किलों की तरफ बहुत ही सलीके से इशारा कर जाते हैं। जीना भी कठिन है और मरना भी मुश्किल--कितनी गहन मजबूरी है! उनकी शायरी पढ़ते जा सुनते हुए इस बात का अहसास बहुत बार होता है।
उनका इस दुनिया में जन्म 29 अगस्त 1954 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले की बांसगाँव तहसील (अब खजनी) अन्तर्गत ग्राम कुण्डाभरथ में हुआ। लगता है इस जन्म से पहले वह निश्चित ही किसी और दुनिया में भी रहे होंगे। उनकी शायरी पढ़ते हुए अहसास होता है कि उनकी शिक्षा की औपचारिकता भी पूरी शिद्दत से हुई।
कानपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम. ए. किया। सन 1968-69 से लेखन की शुरुआत हुई। पहली कहानी सन 1971में प्रकाशित हुई और उनका नाम कहानीकारों में भी उभर कर सामने आया। तबसे सैकड़ों रचनाएँ हिन्दुस्तान के प्रमुख समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। यूट्यूब पर उनके मुशायरे भी मिल जाएंगे। अनेक प्रकार की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्थाओं के सदस्य और इमारात में हिन्दी के विकास में संलग्न रहे। संप्रति संयुक्त अरब इमारात के अबूधाबी नगर में अध्यापन के व्यवसाय में हैं। उनकी रचनाएं आज भी बहुत से लोगों के दिलों में हैं। उनकी शायरी सीधा दिल में उतरती है। इसके साथ ही ज़िंदगी के रूबरू भी करवाती है।
उनकी प्रकशित कृतियों में कुछ नाम आज भी विशेष हैं:
कहानी संग्रहों में हैं : दो औरतें, पूरी हक़ीकत पूरा फ़साना, नातूर।
एकांकी नाटक में हैं: यह बहस जारी रहेगी, एक दिन ऐसा होगा, गांधी के देश में
नाटक की दुनिया में है: संगठन के टुकड़े
कविता संग्रह में: मेरे मुक्तक : मेरे गीत, मेरे गीत तुम्हारे हैं, मेरी लम्बी कविताएँ,
उपन्यास: रेखा उर्फ नौलखिया, पथराई आँखों वाला यात्री, पारदर्शियाँ।
यात्रा वृतांत: सागर के इस पार से उस पार से।
गौरतलब है कि "दो औरतें" कहानी का नेशनल स्कूल ऑफ ड्रॉमा दिल्ली द्वारा श्री देवेंन्द्र राज अंकुर के निर्देशन में सन 1996 में जो मंचन हुआ वह बेहद लोकप्रिय हुआ। अखबार और रेडियो की दुनिया से संबद्ध रहने के बाद सत्रह वर्षों से भी अधिक समय तक अध्यापन से भी जुड़े रहे। इसे इस रूप में भी बेहद पसंद किया गया।
कृष्ण बिहारी नूर साहिब की बहुत सी शायरी विभिन्न वेबसाईट पर भी देखी जा सकती है। उनके लिए अलग से भी एक समर्पित वेबसाईट बनाने के प्रयास चले थे लेकिन इनके बारे में ज़्यादा पता नहीं चल सका। आखिर में एक बात और कि वह आखिरी सांस तक शायरी और मुशायरे के लिए समर्पित रहे। ऐसे ही हुआ करते हैं कलम के सिपाही।
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