Tuesday, 7 January 2020

जे एन यू के जुगनू//रजनी शर्मा

जेएनयू के छात्रों पर हुए हमले ने साहित्य पर भी प्रभाव डाला 
हमलावरों के हमले में घायल छात्र नेता आईशी घोष 
साहित्य क्षेत्र: 7 जनवरी 2020: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो)::
कलमकार संवेदनशील होते हैं। इसीलिए उन्हें प्राकृति भी अपने सभी रहस्य बहुत आसानी से बता देती है। हर घटना उनके दिल और दिमाग पर असर करती है। जेएनयू में छात्रों पर हुए हमले ने भी उन्हें आंदोलित किया है।एक शायरा रजनी शर्मा ने इस अमानवीय घटना पर एक काव्य रचना लिखी है जिसे हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं। आपको यह रचना कैसी लगी अवश्य बताएं। --रेक्टर कथूरिया 
जे एन यू के जुगनू//रजनी शर्मा
अचानक नकाबपोश
अंधेरे मे
पहुंच जाते हैं
पकड़ कर डंडे
जे एन यू  के जुगनुओं
को पकड़ने
और गेट अपने आप
खुल जाता है
ताकि अंधेरे में
 उन्हें मसला जाए
सिर फोड़
खून बहाया जाए,
जश्न मनाया जाए,
पर वो क्यों
भूल गए
झूठ की धुन्ध
ज्यादा देर नही टिकती,
सूरज निकलेगा,
फिर उड़ेंगे
ज़ख्मी पर
फिर चमकेंगे
यह जुगनू,
करेंगे अंधेरे का मुँह
और काला।
            ----!!रजनी शर्मा!!

Friday, 3 January 2020

आज के विकास का असली सच बताती प्रो. गुरभजन गिल की काव्य रचना

विज्ञान से भी अधिक सच बताने का प्रयास कर रहा है साहित्य 
साहित्य क्षेत्र: 7 जनवरी 2020: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो):: 
आज के युग का विकास कितना निरथर्क और खोखला सा लगने लगा है इसकी झलक अब आज के साहित्य में भी आने लगी है। डार्विन झूठ बोलता है-एक ऐसी ही रचना है। न कोई विज्ञान, न कोई शोध कार्य लेकिन बात सीधा दिल में उतरती है और इसके लिए कोई प्रमाण भी नहीं मांगती।आप भी पढ़िये और बताईए कि आपको  कैसी लगी यह रचना? आपके विचारों की इंतजार रहेगी ही। बहुत ही गहरी बात कह रही इस काव्य रचना का बहुत ही सशक्त अनुवाद किया है प्रदीप सिंह ने। --रेक्टर कथूरिया 
डार्विन झूठ बोलता है//प्रो. गुरभजन सिंह गिल 
हम विकसित बंदर से नहीं
भेड़ से हुए हैं
भेड़ थे
भेड़ हैं
और भेड़ रहेंगे
जब तक हमें हमारी ऊन की
कीमत पता नहीं चलती।
हमें चराने वाला ही हमें काटता है।
बंदर तो बाज़ार में खरीद-फरोख्त करता
कारोबारी है।
बिना कुछ खर्च किए
मुनाफे का अधिकारी है।
हम दुश्मन नहीं पहचानते
हमारी सोच मरी है।
डार्विन से कहो!
अपने विकासवादी सिद्धांत की
फिर समीक्षा करे!
कि वक़्त बदल गया है।
            -गुरभजन गिल
अनुवाद- प्रदीप सिंह

Wednesday, 1 January 2020

डा. राजेन्द्र टोकी को मिला उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान का "सौहार्द सम्मान"

पंजाब प्रदेश की खन्ना तहसील में रहते हैं राजेंद्र टोकी 
खन्ना//लुधियाना: 31 दिसंबर 2020: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो)::
उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा  पंजाब प्रदेश की खन्ना तहसील में रहने वाले सतत् स्वाध्यायशील एवं यशस्वी साहित्यकार डा. राजेन्द्र टोकी को  2 लाख रु. राशि वाला *सौहार्द सम्मान* प्रदान किया गया है।  
अपनी भलमनसाहत के लिए विख्यात डॉ. राजेन्द्र टोकी की गणना भारतीय जीवन-मूल्यों के संवाहक और लेखन व शिक्षा के प्रति आस्थावान व्यक्तित्वों में होती है। रचना, आलोचना, अनुवाद, अनुसन्धान, सम्पादन आदि उनके कृतित्त्व के कई पहलू हैं| कविता, ग़ज़ल, कहानी, निबन्ध जैसी विधाओं में रचनात्मक लेखन के 
अतिरिक्त उर्दू व पंजाबी से हिन्दी अनुवाद, सम्पादन और आलोचनाकर्म में तल्लीन रहते हुए उन्होंने लगभग 
42 पुस्तकों के माध्यम से साहित्य-भण्डार में श्रीवृद्धि की है। टोकी जी द्वारा  "ओउम् जय जगदीश हरे"  आरती के रचयिता पण्डित श्रद्धाराम फिल्लौरी पर गम्भीर अनुसन्धानपरक कार्य किया है| लुधियाना शहर के सीमान्त पर बसे 'फिल्लौर' कस्बे में रहने वाले श्रद्धाराम फिल्लौरी की हिन्दी, संस्कृत, उर्दू और पंजाबी की अनुपलब्ध रचनाओं के अन्वेषण के पश्चात् किया गया यह कार्य निश्चित ही श्रमसाध्य एवं सर्वोत्कृष्ट कार्य है। उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा राजेन्द्र टोकी जी को वर्ष-2018 के लिए "सौहार्द सम्मान" दिए जाने से ईमानदार लेखन की प्रति आस्था और उत्साह जगा है। निश्चित ही पुरस्कार की गरिमा भी बढ़ी है। इसके लिए 'उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ' की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की जानी चाहिए। राजेन्द्र टोकी जी को "सौहार्द सम्मान" मिलने पर साहित्य स्क्रीन परिवार की तरफ से भी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।