Saturday, 29 December 2018

लुधियाना में "नवरंग" की तरफ से हुआ मुशायरे का आयोजन

भिलाई से डा. शुचि "भवि" और लखनऊ से डा. हरि प्रसाद भी पहुंचे 
लुधियाना: 29 दिसंबर 2018: (कार्तिका सिंह//पंजाब स्क्रीन):: 
जब वर्ष के अंत में 25 दिसंबर का अंतर्राष्ट्रीय त्यौहार और तुलसी पूजन का राष्ट्रिय त्यौहार गुज़र जाता है तो यूं  लगने लगता है जैसे वर्ष के साथ साथ त्योहारी सीज़न समाप्त हो गया हो। सेलिब्रेशन के दिन अतीत की बात बन गए हों। दिल्ली के एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार से लौट कर थकावट का अहसास भी कुछ ज़्यादा ही होने लगा था शायद यह घर के राहत भरे माहौल का असर भी था। इसी बीच इंडियन पीपुल्ज़ थिएटर एसोसिएशन अर्थात इप्टा से जुड़े सक्रिय कलाकार और मंच निदेशक प्रदीप शर्मा जी ने कहा की आज शाम को तो वाईली स्कूल में एक मुशायरा है। बस इतना सुनते ही साड़ी थकावट रफ़ूचक्र  हो गयी। ऐसे लगने लगा जैसे त्योहारी सीज़न फिर लौट आया हो। और हम कुछ मिण्टस की देरी से मुशायरे में पहुंच गए। 
 वास्तव में इस आयोजन में केवल मुशायरा ही नहीं कुछ ख़ास बुद्धिजीवियों से भेंट का एक सुअवसर भी था। इस आयोजन में बेहद आकर्षक व्यक्तित्व  प्रभाव की शायरा शुचि "भवि" भी मौजूद  थीं जो भिलाई (छत्तीसगढ़) से आईं हुईं थी। काव्य के क्षेत्र में उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  
      उनके साथ ही मुशायरे में मौजूद थे डा. हरि प्रसाद फ़ैज़ाबादी जो लखनऊ से आए हुए थे। उनकी एक खासियत यह भी की उन्होंने जानमाने शायर जनाब राहत इंदौरी साहिब पर पीएचडी की है। उनका इस मुशायरे में होना सभी शायरों के लिए एक गौरव की बात थी। राहत इंदौरी साहिब इस युग के लोकप्रिय जन-शायर के रूप में जाने जाते हैं। उनका सच बोलने का अंदाज़ उनकी हिम्मत को भी दर्शाता है। आजकल सच बोलना और भी मुश्किल हो गया है। 
इस मुशायरे में बहुत लम्बी साहित्य साधना करने वाली डा. गुरुचरण कौर कोचर, हिंदी, उर्दू हुए पंजाबी में लिखने वाली लोकप्रिय शायरा जसप्रीत कौर फलक, सादगी पर पहरा देने वाली शायरा छाया शर्मा, बहुत ही सलीके से कलम के दुश्मनों पर चोट करने वाले शायर जनाब आशु गर्ग साहिब, एकता पूजा शर्मा और बहुत से  और भी जानमाने शायर शायर मौजूद थे जिनके लिए आज के इस व्यापारिक और कारोबारी युग में भी कलम की साधना सर्वोप्रिय है। 
लुधियाना के माहौल में शायरी की शमा जलाये रखा, इसके लिए वक्त निकालना, सारे प्रबंध और आयोजन की दिक्कतों के होते हुए सफल इवेंट---आसान नहीं था लेकिन सभी प्रबन्धक बधाई के हकदार हैं। जनाब सागर सियलकोटि साहिब का मंच संचालन भी कमाल का था। जज़्बातों की बाढ़ में समय और इवेंट के आयोजन की कश्ती को संभाले रखना आसान नहीं होता। उन्होंने समय का बहुत ध्यान रखा। शेख शाहरुख़ राजा ने भी सक्रिय योगदान दिया। लुधियाना की सक्रिय शायरा नीलू बग्गा लुधयानवी ने भी अपनी रचनाओं से श्रोताओं को मंत्रमुगध किया। इस सरे आयोजन की सफलता में कुछ नाम ऐसे भी हैं जो पर्दे के पीछे रहते हैं। अक्सर वे सामने नहीं आते -उन्हीं में से एक नाम डा. बेनु सतीश कांत का। रचनत्मक कार्यों में हर समय उनका पूरा परिवार सक्रिय रहता है। 
शायरों का कलाम आप वीडियो में सुन भी सकते हैं--और साथ ही उनका अंदाज़ भी देख सकते हैं। कोशिश होगी जल्द ही आपके सामने नए आयोजन की रिपोर्ट भी लाई जाये। 

Sunday, 9 December 2018

बज्मे हबीब की ओर से शायरी की खूबसूरत महफिल का आयोजन

Dec 9, 2018, 5:15 PM
साहिर के वतन में आज भी शायरी जिंदा है:दानिश भारती
लुधियाना: 9 दिसम्बर  2018: (साहित्य स्क्रीन ब्यूरो)::
खूबसूरत महफिल-ए-शायरी का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता श्री डी.के सचदेवा उर्फ दानिश भारती ने की। इस अवसर पर मुख्य मेहमान हाजी बाबा हाफिज मुहम्मद इकराम का नायब शाही इमाम मौलाना मुहम्मद उस्मान रहमानी लुधियानवी ने सम्मान भी किया। शायरी की इस महफिल में वरुण आनंद, अशफाक अहमद, सागर सायालकोटी, तरसेम नूर, मनोहर विजय, हस्सान नसीराबादी, रजनीश वर्मा,राजिंदर राजन, काफिर जलंधरी, गुरचरण नारंग, बसित अली बेताब, सैम मुसाफिर ने अपना ताजा कलाम पेश किया। इस अवसर पर महफिल की अध्यक्षता करते हुए जनाब दानिश भारती ने कहा की लुधियाना शहर ने जहां स्वतंत्रता संग्राम और उद्योग में अपना नाम कमाया है वहीं शायरी की दुनिया में साहिर लुधियानवी जैसे सपूत इस धरती पर पैदा हुए, जिन्होंने साहित्य की दुनिया में अपने शहर को एक अलग पहचान दी है। दानिश भारती ने कहा कि साहिर के वतन में आज भी शायरी जिंदा हैं, लुधियानवीओं का शायरी सुनने का अंदाज भी बड़ा सम्मान जनक है। उन्होंने ने कहा कि बज्मे हबीब शहर की एक पुरानी और मशहूर अदब नवाज संस्था है जो की प्रसिद्ध मरहूम मौलाना मुहम्मद अहमद रहमानी ने देश के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी मौलाना हबीब उर रहमान लुधियानवी प्रथम के नाम पर 1956 में स्थापित की थी। दानिश ने कहा की बज्मे हबीब लुधियानवियों का एक गुलदस्ता है जिसकी खुशबू चारों ओर फैली हुई है। इस अवसर पर नायब शाही इमाम मौलाना मुहम्मद उस्मान रहमानी लुधियानवी ने सभी शायरों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि शायरी दिल की आवाज होती है इसे लफ्जों में ढालना हर एक के बस की बात नहीं, जो शायर होते हैं वह जिंदा दिल होते हैं। निडर और साफ छवि वाले शायर एक अच्छा समाज बनाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। नायब शाही इमाम ने कहा कि अगर हम इतिहास उठा कर देखें तो शायरी में सिर्फ इश्क और मजा ही नहीं है बल्कि यह शायर जंग-ए-आजादी में दिलों में गर्माहट पैदा करते भी नजर आते हैं। उस्मान रहमानी ने कहा कि आज जरुरत है कि नौजवान नसल में अच्छी शायरी के प्रति जागरूकता लाई जाए। 

Monday, 12 November 2018

काव्य रचना//बुतपरस्ती//मंजुल भारद्वाज

October 30 at 10:07 AM
अम्बेडकर का बुत बना--सरकारों ने संविधान रौंद डाला
गांधी के सत और सत्व को 
कांग्रेस ने बुत बना डाला

अम्बेडकर का बुत बना 
सरकारों ने संविधान रौंद डाला

अखंडता के पाखंडी संघी 
देश को करते रहे लहूलुहान
घृणा,नफ़रत के सौदागर ने
3000 करोड़ में 600 फीट का 
चीन के साथ मिलकर 
सरदार का बुत बना डाला

स्वतन्त्रता के सिपाहियों की 
भयावह त्रासदी है यह 
बुतपरस्त देश ने 
उनके आदर्शों को 
मटियामेट कर डाला!

Wednesday, 18 July 2018

गज़ल/रेक्टर कथूरिया

न तू जाना न अन्जाना लगता है!
अपना है तो क्यूँ बेगाना लगता है!

लगता है फिर दिल की शामत आई है;
इसको उसका साथ सुहाना लगता है!

उसका न कोई दोस्त, न कोई दुश्मन है;
उसका तो हर एक दीवाना लगता है!

वक्त की मरहम सब जख्मों को भरती है;
पर इसको भी एक ज़माना लगता है!

ज़िक्र चला जब उसका आंसू छलक पड़े;
यह तो कोई जख्म पुराना लगता है!

तू न शामिल हो तो बात नहीं बनती;
महफिल में हर एक बेगाना लगता है!

उसका साथ न हो तो रंग नहीं जमता;
वो हो तो हर रंग सुहाना लगता है!  

प्यार है सच्चा तो फिर कैसी मजबूरी;
यह तो तेरा नया बहाना लगता है!

मालूम है अंजाम हमें उम्मीदों का;
फिर भी आस लगाना अच्छा लगता है!
             -रेक्टर कथूरिया (03 दिसम्बर 1989)     

Friday, 18 May 2018

हरकीरत कौर चाहल का नावल "थोहरां दे फुल" का विमोचन

यह नावल पंजाब में महिला की दुखद स्थिति का दस्तावेज़
लुधियाना: 18 मई 2018: (साहित्य स्क्रीन टीम):: 
पीएयू के स्टूडेंटस होम में आज साहित्यिक माहौल बना रहा। पंजाबी साहित्यकारा हरकीरत कौर चाहल की पुस्तक के विमोचन को लेकर उत्साह का माहौल था। यह नावल "थोहरां  दे फुल" अर्थात काँटों के फूल हरकीरत कौर चाहल की तीसरी पुस्तक है। इस अवसर पर बहुत से गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे। 
एनआरआई लेखिका हरकीरत कौर चाहल का नया नावल पीएयू में लोकार्पण किया गया। पीएयू साहित्य सभा और पंजाबी साहित्य अकादमी की ओर से आयोजित समागम के प्रधानगी मंडल में गुरु अंगद देव वेटनरी यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. अमरजीत सिंह नंदा, गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी डॉ. एसपी सिंह, पंजाबी भवन सरी के संचालक सुक्खी बाठ, अकादमी के प्रधान प्रो. रविंदर सिंह भट्ठल, विख्यात लेखक बलदेव सिंह सड़कनामा, पंजाबी यूनिवर्सिटी जर्नलिज्म डिपार्टमेंट के डीन डॉ. हरजिंदर सिंह वालिया, पंजाबी कवि अमर सूफी और हरकीरत चाहल शामिल रहे। प्रो. गुरभजन गिल ने आए मेहमानों और लेखकों का स्वागत किया। 
रविंदर भट्ठल ने चाहल की रचनात्मक रुचि की सराहना की। वीसी डॉ. नंदा ने चाहल परिवार से यू्निवर्सिटी के पुराने रिश्तों की याद दिलाई। इस मौके पर गुरप्रीत सिंह तूर, गुरमीत कडिय़ालवी, सतीश गुलाटी, जगतार संघेड़ा, प्रितपाल कौर चाहल, डॉ. गुलजार सिंह पंधेर, सहजप्रीत सिंह मांगट, गुरचरन कौर कोचर, हरलीन सोना, डॉ. फकीर चंद शुक्ला, सुल्ताना बेगम, रमनदीप विर्क, पवित्तर कौर माटी और डॉ. जगतार धीमान भी मौजूद रहे। जानेमाने लेखकों ने इस पुस्तक पर अपना अपना नज़रिया भी प्रस्तुत किया। 
ट्रक ड्राईवरी के कड़वे अनुभवों को "सड़कनामा" शीर्षक से संजो कर रखने वाले जानेमाने लेखक बलदेव सिंह ने कहा कि रिलीज़ किया गया नावल वास्तव में यह नावल प्रवासी नावलकरिता का नया अध्याय है। इसी तरह पत्रकारिता और लेखन-दोनों पर अपनी पकड़ रखने वाले प्रोफेसर हरजिंदर सिंह वालिया ने कहा की यह नावल पंजाब में महिला की दुखद स्थिति का दस्तावेज़ है। 

Wednesday, 11 April 2018

दिल को छूने वाली सादगी भरी शायरी करते हैं रौनक साहिब

प्रगतिशील विचारधारा से गहरा और भावुक सम्बन्ध
सैकड़ों पुल बने फ़ासले भी मिटे, 
आदमी आदमी से जुदा ही रहा। 
यह किसका शेयर है--मुझे नहीं मालूम था।
मुझे लगा मनोज जी ने रचा है।  लेकिन यह एक गलतफ़हमी थी। थोड़ी खोज की तो जवाब मिल गया। 
यह शेयर रौनक़ नईम साहिब का है। रौनक़ नईम साहिब प्रगतिशील आंदोलन के लिए निरंतर सक्रिय रहे हैं।
प्रगतिशील आन्दोलन से सम्बद्ध विशिष्ट महत्व के शायरों में से हैं रौनक़ नईम साहिब। उन्होंने न सिर्फ़ प्रगतिवादी विचारधारा को आम करने वाली शायरी की बल्कि आन्दोलन के एक सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में अवाम के बीच काम भी किया। उनकी शायरी में मुश्किल से शब्द नहीं होते। भारी भरकम शब्द भी नहीं होते। दिल को छूने वाली सादगी भरी शायरी करते हैं रौनक साहिब।
पृष्ठभूमि देखें तो तार बांग्ला से भी जुड़ती है कर उर्दू से भी। रौनक़ नईम की पैदाइश 1933 में सिवड़ी पश्चिम बंगाल में हुई। रौनक़ के पिता बांगला भाषा में शायरी करते थे। चचा मुहम्मद इकराम अशरफ़ी और मौसा अब्बास अली ख़ाँ उर्दू के शायर थे। रौनक़ ने आरम्भ में अपने मौसा से ही कलाम का संशोधन कराया। रौनक़ ने जिस वक़्त शायरी शुरू की प्रगतिशील आन्दोलन अपने शिखर पर था। अतः उन्होंने इसकी विचारधारा से प्रभावित हो कर पूंजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध और एक आधुनिक समाज के हक में नज़्में लिखीं। उनकी नज़्में और गज़लें आन्दोलन की मुखपत्रिका ‘शाहराह’ और सज्जाद ज़हीर के साप्ताहिक ‘अवामी दौर’ में नियमित रूप से प्रकाशित होती थीं।
रौनक़ नईम के कई काव्य संग्रह प्रकाशित हुए, कुछ के नाम ये हैं— ‘दायरा दर दायरा’, ‘पानी बहता जाए’, ‘समन्दर बोलता है’, ‘उदास जंगल’। प्रसिद्ध प्रगतिवादी शायर और आन्दोलन के सक्रिय सदस्य होने के कारण उनकी शायरी में भी यह सब स्पष्ट झलकता था। उम्मीद है आपको उनकी शायरी आम जनता के दुःख सुख की बातें सुनते हुए संघर्षकि दुनिया में ले जाएगी। 

Monday, 26 February 2018

🌅 सुबह-सवेरे 🌅 अगर तुम युवा हो//शशिप्रकाश

तुम हो वीर शहीदों के जीवन के वे दिन//जिन्हें वे जी न सके
जब तुम्हें होना है
हमारे इस ऊर्जस्वी, सम्भावनासम्पन्न,
लेकिन अँधेरे, अभागे देश में
एक योद्धा शिल्पी की तरह
और रोशनी की एक चटाई बुननी है
और आग और पानी और फ़ूलों और पुरातन पत्थरों से
बच्चों का सपनाघर बनाना है,
तुम सुस्ता रहे हो
एक बूढ़े बरगद के नीचे
अपने सपनों के लिए एक गहरी कब्र खोदने के बाद।

तुम्हारे पिताओं को उनके बचपन में
नाज़िम हिकमत ने भरोसा दिलाया था
धूप के उजले दिन देखने का,
अपनी तेज़-रफ़्तार नावें
चमकीले-नीले-खुले समन्दर में दौड़ाने का।
और सचमुच हमने देखे कुछ उजले दिन
और तेज़-रफ़्तार नावें लेकर
समन्दर की सैर पर भी निकले।
लेकिन वे थोड़े से उजले दिन
बस एक बानगी थे,
एक झलक-मात्र थे,
भविष्य के उन दिनों की
जो अभी दूर थे और जिन्हें तुम्हें लाना है
और सौंपना है अपने बच्चों को।
हमारे देखे हुए उजले दिन
प्रतिक्रिया की काली आँधी में गुम हो गये दशकों पहले
और अब रात के दलदल में
पसरा है निचाट सन्नाटा,
बस जीवन के महावृत्तान्त के समापन की
कामना या घोषणा करती बौद्धिक तांत्रिकों की
आवाजें सुनाई दे रही हैं यहाँ-वहाँ
हम नहीं कहेंगे तुमसे
सूर्योदय और दूरस्थ सुखों और
सुनिश्चित विजय
और बसन्त के उत्तेजक चुम्बनों के बारे में
कुछ बेहद उम्मीद भरी बातें
हम तुम्हें भविष्य के प्रति आश्वस्त नहीं
बेचैन करना चाहते हैं।
हम तुम्हें किसी सोये हुए गाँव की
तंद्रिलता की याद नहीं,
बस नायकों की स्मृतियाँ
विचारों की विरासत
और दिल तोड़ देने वाली पराजय का
बोझ सौंपना चाहते हैं
ताकि तुम नये प्रयोगों का धीरज सँजो सको,
आने वाली लड़ाइयों के लिए
नये-नये व्यूह रच सको,
ताकि तुम जल्दबाज़ योद्धा की ग़लतियाँ न करो।

बेशक थकान और उदासी भरे दिन
आयेंगे अपनी पूरी ताक़त के साथ
तुम पर हल्ला बोलने और
थोड़ा जी लेने की चाहत भी
थोड़ा और, थोड़ा और जी लेने के लिए लुभायेगी,
लेकिन तब ज़रूर याद करना कि किस तरह
प्यार और संगीत को जलाते रहे
हथियारबन्द हत्यारों के गिरोह
और किस तरह भुखमरी और युद्धों और
पागलपन और आत्महत्याओं के बीच
नये-नये सिद्धान्त जनमते रहे
विवेक को दफ़नाते हुए
नयी-नयी सनक भरी विलासिताओं के साथ।
याद रखना फ़िलिस्तीन और इराक़ को
और लातिन अमेरिकी लोगों के
जीवन और जंगलों के महाविनाश को,
याद रखना सब कुछ राख कर देने वाली आग
और सबकुछ रातो रात बहा ले जाने वाली
बारिश को,
धरती में दबे खनिजों की शक्ति को,
गुमसुम उदास अपने देश के पहाड़ों के
निःश्वासों को,
ज़हर घोल दी गयी नदियों के रुदन को,
समन्दर किनारे की नमकीन उमस को
और प्रतीक्षारत प्यार को।

एक गीत अभी ख़त्म हुआ है,
रो-रोकर थक चुका बच्चा अभी सोया है,
विचारों को लगातार चलते रहना है
और अन्ततः लोगों के अन्तस्तल तक पहुँचकर
एक अनन्त कोलाहल रचना है
और तब तक,
तुम्हें स्वयं अनेकों विरूपताओं
और अधूरेपन के साथ
अपने हिस्से का जीवन जीना है
मानवीय चीज़ों की अर्थवत्ता की बहाली के लिए लड़ते हुए
और एक नया सौन्दर्यशास्त्र रचना है।

तुम हो प्यार और सौन्दर्य और नैसर्गिकता की
निष्कपट कामना,
तुम हो स्मृतियों और स्वप्नों का द्वंद्व,
तुम हो वीर शहीदों के जीवन के वे दिन
जिन्हें वे जी न सके।
इस अँधेरे, उमस भरे कारागृह में
तुम हो उजाले की खिड़कियाँ,
अगर तुम युवा हो!

व्हाटसप पर "मज़दूर बिगुल" ग्रुप  में 27 फ़रवरी 2018 को  सुबह 08:07 बजे पोस्ट की गयी रचना।